एस्ट्रोसैट, भारत की पहली मल्टी-वेवलेंथ अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला है, जिसने अल्ट्राहाई चुंबकीय क्षेत्र (मैग्नेटर) के साथ एक नए और विशिष्ट न्यूट्रॉन तारे से चमकीले सब-सेकेंड एक्स-रे विस्फोट का पता लगाया है। इससे मैग्नेटर्स की दिलचस्प चरम खगोल भौतिकी स्थितियों को समझने में सहायता मिल सकती है।
मैग्नेटार ऐसे न्यूट्रॉन तारे हैं जिनमें अल्ट्राहाई चुंबकीय क्षेत्र होता है जो स्थलीय चुंबकीय क्षेत्र की तुलना में बहुत अधिक मजबूत होता है। सामान्य रूप से कहें तो मैग्नेटर का चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से एक क्वाड्रिलियन (एक करोड़ शंख) गुना अधिक मजबूत होता है। उनमें उच्च-ऊर्जा विद्युत चुम्बकीय विकिरण के उत्सर्जन की शक्ति इन वस्तुओं में चुंबकीय क्षेत्र का क्षरण है। इसके अलावा, मैग्नेटर्स मजबूत अस्थायी परिवर्तनशीलता को प्रदर्शित करते हैं, जिसमें सामान्य रूप से धीमी गति से घूमना, तेजी से घूमना, चमकीले लेकिन छोटे विस्फोट शामिल होते हैं जो महीनों तक चलते रहते हैं।
ऐसे एक मैग्नेटर को एसजीआर जे1830-0645 कहा जाता था, जिसकी अक्टूबर 2020 में नासा के स्विफ्ट अंतरिक्ष यान ने खोज की थी। यह अपेक्षाकृत युवा (लगभग 24,000 वर्ष) और पृथक न्यूट्रॉन तारा है।
एस्ट्रोसैट के साथ ब्रॉड-बैंड एक्स-रे ऊर्जा में मैग्नेटर का अध्ययन करने और इसकी विशेषताओं का पता लगाने के उद्देश्य के लिए प्रेरित होकर, रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई) और दिल्ली विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एस्ट्रोसैट पर दो उपकरणों- बड़े क्षेत्र वाले एक्स-रे आनुपातिक काउंटर (एलएएक्सपीसी) और सॉफ्ट एक्स-रे टेलीस्कोप (एसएक्सटी) का उपयोग करके इस मैग्नेटर का समय और स्पेक्ट्रल का विश्लेषण किया है।
“एक मुख्य निष्कर्ष 33 मिलिसेकंड की औसत अवधि के साथ 67 छोटे सब-सेकंड एक्स-रे विस्फोटों का पता लगाना था। इन विस्फोटों में से एक सबसे चमकीला विस्फोट लगभग 90 मिलीसेकंड का रहा।” यह जानकारी विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित एक स्वायत्त संस्थान आरआरआई में पोस्ट-डॉक्टरल फेलो और अनुसंधान-पत्र के लेखक डॉ. राहुल शर्मा ने दी।
यह अध्ययन रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के मासिक सूचना में प्रकाशित हुआ। जिसमें यह निष्कर्ष निकाला गया है कि एसजीआर जे1830-0645 एक विशिष्ट मेगनेटर है जो अपने स्पेक्ट्रा में उत्सर्जन लाइन को प्रदर्शित करता है।
इस अध्ययन में कहा गया है कि उत्सर्जन लाइनों की उपस्थिति और इसकी संभावित उत्पत्ति या तो आयरन की प्रतिदीप्ति, प्रोटॉन साइक्लोट्रॉन लाइन या एक उपकरणीय प्रभाव के कारण हुई जो चर्चा का कारण बनी हुई है।
डॉ. शर्मा ने कहा कि एसजीआर जे1830-0645 में ऊर्जा-निर्भरता कई अन्य मगनेटरों में पाई गई ऊर्जा से भिन्न थी। यहां, न्यूट्रॉन तारे की सतह (0.65 और 2.45 किमी की रेडियस) से उत्पन्न होने वाले दो थर्मल ब्लैकबॉडी उत्सर्जन घटक थे। इस प्रकार, यह शोध मैग्नेटर्स और उनकी चरम खगोलीय स्थितियों के बारे में हमारी समझ को आगे बढ़ाने में योगदान देता है।
हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय की सह-लेखिका प्रोफेसर चेतना जैन ने कहा कि हमने यह देखा है कि समग्र एक्स-रे उत्सर्जन के स्पंदित घटक ने ऊर्जा के साथ महत्वपूर्ण भिन्नता दर्शायी है। यह ऊर्जा के लिए लगभग 5 किलोइलेक्ट्रॉन वोल्ट (केवी) तक बढ़ गया और उसके बाद इसमें भारी गिरावट देखी गई। यह प्रवृत्ति कई अन्य मैग्नेटरों में पाई गई प्रवृत्ति से अलग है।
शोध दल अब इन अत्यधिक ऊर्जावान उत्सर्जनों की उत्पत्ति को समझने और यह पता लगाने के लिए अपने आगे के अध्ययन का विस्तार करने की योजना बना रहा है कि क्या ये उत्सर्जन खगोलीय है या यांत्रिक प्रकृति के हैं।
प्रकाशन लिंक –
https://academic.oup.com/mnras/article/526/4/4877/7325939
भारत की पहली मल्टी-वेवलेंथ अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला — एस्ट्रोसैट
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