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एसीएसआईआर (AcSIR) से हिंदी भाषा में प्रथम पी-एच.डी. (PhD) की यात्रा

मातृभाषा होने के कारण हिंदी भाषा मुझे प्रिय रही है। इसके अलावा बचपन में परिवार में ऐसा माहौल था जिसमें हिंदी भाषा में विभिन्न धार्मिक साहित्य को पढ़ने का अवसर मिला। बचपन से किशोरावस्था तक पहुंचने में प्रकृति के विभिन्न रहस्यों के प्रति जिज्ञासा जाग्रत होने लगी। इससे विज्ञान विषय में अध्ययन का मन बना। हालांकि इस दौरान अंदर ही अंदर एक लेखक का अंकुरण भी हो रहा था। शासकीय होल्कर विज्ञान महाविद्यालय, इंदौर से विज्ञान विषय में स्नातक (B.Sc.) करने के दौरान धीरे-धीरे लेखन कार्य आरंभ हुआ। होलकर कॉलेज में स्नातक में विज्ञान विषयों के अलावा हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा भी पढ़ाई गई थी। विभिन्न सामाजिक पत्रिकाओं में सामाजिक एवं राष्ट्रीय विषय पर लिखता रहा। राष्ट्रीय स्तर पर मेरा पहला लेख नवभारत समाचार, इंदौर से प्रकाशित हुआ जो ओजोन आवरण पर था।
विज्ञान लेखन की रुचि को देखते हुए ही मैंने स्कूल ऑफ फ्यूचर स्टडीज एंड प्लानिंग, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर से विज्ञान संचार (Science Communication) में 2006 में एम-एस.सी. (M.Sc.) किया। यह कोर्स विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सहयोग से चलाया जा रहा था।
अब तैयारी थी इंदौर से सीधे देश की राजधानी दिल्ली जाने की। दिल्ली मेरी कर्मभूमि बनी। 2006 से 2023 तक विज्ञान संचार के लिए समर्पित रही संस्था नई दिल्ली स्थित विज्ञान प्रसार (Vigyan Prasar) में कार्यरत रहा। इस संस्थान में रहते हुए मैंने प्रिंट, इलेक्टॉनिक, एडूसेट (EduSAT, उपग्रह आधारित संचार प्रणाली), सोशल मीडिया, ओटीटी (OTT) चैनल ‘इंडिया साइंस’ आदि माध्यमों के द्वारा विज्ञान संचार के कार्य किए। इस दौरान राष्ट्रीय स्तर के अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए। भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों ने हिंदी में विज्ञान लेखन के लिए मेरी पुस्तकों को पुरस्कृत किया। 2011 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के हाथों से राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन सम्मान से सम्मानित होना जीवन का अत्यंक महत्वपूर्ण क्षण रहा।
इस तरह विज्ञान लेखन और विचार संचार की मेरी यात्रा अनवरत चल रही थी। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और पोर्टल के लिए विज्ञान लेख प्रेषित करने का सिलसिला भी चल निकला। एक-दो बार ऐसा हुआ कि पत्र-पत्रिकाओं ने मेरे नाम के आगे डॉ. लगाकर मेरा लेख प्रकाशित किया। कुछ पत्रिकाएं प्राप्त होती थीं उन पर लिखा होता था डॉ. नवनीत कुमार गुप्ता। बाद में मैंने संपादकों को बताया कि मेरे नाम के साथ डॉ. न लगाएं। मैंने पी-एच.डी. नहीं की है। हालांकि इस दौरान कुछ संपादकों ने मुझे डॉक्टरेट करने की सलाह दी। मेरे मन भी इच्छा जाग्रत हुई कि मुझे पी-एच.डी. (Ph.D.) करना चाहिए।
2019 को मैंने एक विज्ञापन में देखा कि दिल्ली स्थित सीएसआईआर-निस्केयर (अब सीएसआईआर-निस्पर, CSIR-NIScPR) द्वारा एसीएसआईआर (AcSIR) के तहत पी-एच.डी. कराई जा रही है। परिवार के समक्ष मैंने अपनी ईच्छा व्यक्त की तो हर बार की तरह मुझे यह कार्य करने को प्रेरित किया गया। विज्ञान प्रसार द्वारा भी मुझे सदैव ऐसे कार्यों के लिए प्रेरित किया जाता रहा था तो इस कार्य के लिए भी कार्यालय से अनापत्ति प्रमाण पत्र मिल गया।
पीएचडी की यात्रा अत्यंत रोचक और ज्ञानवर्धक रही। 2019 में, मैं एसीएसआईआर (AcSIR) के तहत सीएसआईआर-निस्पर (CSIR-NIScPR) में शोधार्थी के रूप में पंजीकृत हुआ। यहां पर प्रवेश एक साक्षात्कार के माध्यम से हुआ। मेरे जीवन में वर्ष 2019 का एक और महत्व रहा। विज्ञान प्रसार में जिस कार्य की तैयारियां लगभग दो वर्षों से चल रही थी वह राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित होने जा रहा था। 15 जनवरी, 2019 को तत्कालीन केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री द्वारा देश के पहले ओटीटी साइंस चैनल ‘इंडिया साइंस’ शुभारंभ किया गया। इस चैनल की संकल्पना को मैंने समीप से देखा था और इसमें अपना योगदान भी किया। इस चैनल के परियोजना प्रमुख श्री कपिल त्रिपाठी, वैज्ञानिक, विज्ञान प्रसार की अथक मेहतन और संस्थान के नेतृत्व के सहयोग से 2019 से 2023 के दौरान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संबंधित विभिन्न विषयों पर लगभग 4000 से अधिक वीडियो बनाए गया। जिनमें से अनेक वीडियो को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए। इन सभी वीडियो के संपादकीय समूह में शामिल होकर मैंने विज्ञान संचार के अनेक पहलुओं को समझा। 2019 के दौरान कार्यालय में साइंस चैनल का कार्य बढ़ता ही जा रहा था। दूसरा पी-एच.डी के प्रथम वर्ष के दो सेमेस्टरों में कोर्स वर्क (Course Work) करना था। कोर्स वर्क में हमारे जो शिक्षक (प्रोफेसर) थे वो स्वयं वैज्ञानिक संस्थानों में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत थे। तो छात्रों और शिक्षकों के मध्य यह तय हुआ कि कक्षाएं शनिवार और रविवार और अन्य अवकाश वाले दिन होंगी। ताकि उनके कार्यालय के कामों में भी किसी प्रकार की परेशानी न हो। मेरे लिए भी यह अच्छा था कि पढ़ाई के लिए ऑफिस से छुट्टी नहीं लेनी पड़ी। इस प्रकार नौकरी भी चलती रही और पढ़ाई भी। हालांकि दिल्ली आने के बाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय जामिया मिल्लिया इस्लामिया से हिंदी में एमए और इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू‎ – IGNOU) से अनुवाद में स्नातकोत्तर डिप्लोमा (PGDT) भी दूरस्थ शिक्षा माध्यम से इसीलिए किया ताकि ऑफिस के काम में भी कोई बाधा न आए।
शोध कार्य के लिए मैंने देश की लोकप्रिय विज्ञान पत्रिका ‘विज्ञान प्रगति’ (Vigyan Pragati) को चुना जिसका प्रकाशन 1952 से निरंतर किया जा रहा था। सरकारी क्षेत्र से प्रकाशित होने वाली यह पत्रिका देश की सबसे पुरानी पत्रिका है। इसके अलावा इसमें लेखक, साहित्यकार, वैज्ञानिक, चिंतक आदि विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ विज्ञान लेखन करते हैं। पूरे देश में फैले सीएसआईआर (CSIR) की प्रयोगशालाओं से भी इसमें विज्ञान शोध पर सामग्री प्रकाशित होती है। मेरा शोध शीर्षक ”भारत में लोकप्रिय हिंदी विज्ञान पत्रिका के माध्यम से विज्ञान संचार: एक अध्ययन” था।
कोर्स वर्क में सफलतापूर्वक उत्तीर्ण होने के बाद संस्था ने एक वर्ष के बाद गाईड के लिए सीएसआईआर-निस्पर CSIR-NIScPR) के वैज्ञानिक डॉ. जी. महेश (Dr. G. Mahesh) और को-गाईड के रूप में डीआरडीओ (DRDO) के डॉ. फूलदीप कुमार (Dr. Phuldeep Kumar) को नामित किया। इसके अलावा शोध पर सुझाव के लिए एक डॉक्टरेट एडवाइजरी कमेटी (DAC – Doctoral Advisory Committee) का भी गठन किया गया जिसमें विज्ञान संचार और शोध क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञ शामिल थे। उनके सानिध्य में चार बैठकें (DAC meetings) हुईं जिनमें शोध कार्य की समीक्षा की जाती रहीं और महत्वपूर्ण सुझाव दिए जाते। प्रथम वर्ष में ही एसीएसआईआर (AcSIR) से हिंदी भाषा में शोध कार्य करने की अनुमति प्राप्त हो गई थी ।
मेरे गाईड डॉ. जी. महेश शोध अनुसंधान एवं पुस्तकालय विज्ञान में अच्छा अनुभव रखते हैं। वह राष्ट्रीय विज्ञान पुस्तकालय (National Science Library) के प्रमुख भी रहे। अंग्रेजी भाषा में उनके कई शोध पत्र राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी सबसे अच्छी बात यह है तो अधिकतर वैज्ञानिकों की होती है कि केवल तार्किक बात ही करते हैं। वैज्ञानिक चिंतन युक्त उनका व्यक्तित्व सहजता और सरलता से परिपूर्ण है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संपन्न डॉ. जी. महेश ने आरंभ के कुछ दिनों अनेक महत्वपूर्ण शोध पत्रों और पुस्तकों के अध्ययन का सुझाव दिया। उन्होंने साहित्य समीक्षा कैसे लिखे उस पर विस्तार से वार्ता की और फिर मैंने हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं में विज्ञान पत्रिकाओं के इतिहास का अध्ययन किया और इस कार्य पर एक शोध पत्र भी प्रकाशित हुआ।
डॉ. फूलदीप कुमार ने हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (Central University of Haryana) में कुछ वर्ष अध्यापन का कार्य भी किया। हिंदी भाषा में उनकी कई पुस्तकें भी हैं। शोध कार्य सहित उन्होंने भाषा पर भी कई उपयोगी सुझाव दिए।
मेरे साथ अन्य शोधार्थी भी डॉ. जी महेश के साथ शोधकार्य कर रहे थे। जब कोविड-19 (COVID-19) का दौर आरंभ हुआ। ऐसे में ऑनलाईन माध्यम (Online Mode) से डॉ. जी महेश प्रत्येक सप्ताह हम सभी शोधार्थियों से बात करते और हमारे कार्यों पर विस्तृत बात होती और आगे के लिए सुझाव दिए जाते। इस तरह हमें एक-दूसरे शोधार्थियों के कार्यों को भी समझने का अवसर मिला। डॉ. जी महेश से सर्वे (Surveys), पायलट सर्वे (Pilot Surveys), सर्वे परिक्षण (Pilot Testing), सांख्यिकी विश्लेषण (Statistical Analysis) आदि शोध डिजाईन (Research Design) आदि विभिन्न विषयों पर निरंतर मार्गदर्शन मिला रहा।
शोध कार्य के उपरांत एक बड़ी समस्या थी कि एसीएसआईआर (AcSIR) के नियम के अनुसार शोध कार्य से संबंधित कम से कम एक शोध पत्र प्रभाव कारक इम्पैक्ट फैक्टर (Impact factor) वाले जर्नल (Journal) में प्रकाशित होना चाहिए। लेकिन हिंदी भाषा में ऐसा जर्नल शायद नहीं था। तब एसीएसआईआर (AcSIR) से निवदेन किया कि हिंदी माध्यम के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC – University Grants Commission) द्वारा अनुमोदित हिंदी भाषा में प्रकाशित होने वाले जर्नल में हिंदी शोध पत्र के प्रकाशन को स्वीकार्य किया जाए। काफी समय बाद इस समस्या का निराकरण हुआ और एसीएसआईआर ने हिंदी भाषा में शोध कार्य के लिए मुझे यूजीसी अनुमोदित जर्नल में प्रकाशन की अनुमति दे दी।
शोध के साथ-साथ तीन शोध पत्रों का प्रकाशन हिंदी भाषा में यूजीसी अनुमोदित हिंदी शोध पत्रिकाओं यानी जर्नलों में किया गया। दो शोध पत्र भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान पत्रिका (Bharatiya Vaigyanik evam Audyogik Anusandhan Patrika – BVAAP) में और एक विज्ञान गरिमा सिंधु (Vigyan Garima Sindhu) में प्रकाशित हुआ। इसके अलावा एक शोध पत्र अंग्रेजी भाषा में आईआईएससी (Indian Institute of Mass Communication – IIMC) से प्रकाशित होने वाले कम्यूनिकेटर जर्नल (Communicator Journal) में भी प्रकाशन के लिए स्वीकृत हो चुका है। इसके अलावा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलना में अपने शोध कार्य पर शोध पत्रों एवं पोस्टरों को भी प्रस्तुत किया गया।
फरवरी, 2023 को शोध सलाहकार समिति (DAC) द्वारा मेरे शोध कार्य पर संतुष्टि प्रकट करते हुए मुझे शोध प्रबंध (Thesis) लिखने की अनुमति दी। मेरा मूल शोध प्रबंध हिंदी भाषा में था लेकिन एसीएसआईआर (AcSIR) के नियमानुसार उसकी अंग्रेजी संस्करण भी सितंबर, 2023 तक जमा कराया। इसके बाद अक्टूबर, 2023 से राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत में सहायक संपादक (हिंदी) के उत्तरदायित्व का निर्वाह करना आरंभ किया। यहां पुस्तकों का अनुवाद, संपादन एवं न्यास द्वारा आयोजित कार्यक्रमों की प्रेस विज्ञप्तियां का कार्य करते हुए मातृभाषा हिंदी से जुड़ाव और बढ़ता गया।
पी-एच.डी का शोध कार्य अक्टूबर, 2023 में ही पूर्ण हो चुका था बस इंतजार था शोध प्रबंध पर परीक्षकों की प्रतिक्रिया का। फरवरी, 2024 में शोध प्रबंध पर परीक्षकों (Examiners) की रिपोर्ट फरवरी, 2024 में आ गई जो मेरे अनुरूप ही थी। उसके बाद 4 अप्रैल, 2024 को मौखिक परीक्षा (Viva-Voca) आयोजित की गई।  

मौखिक परीक्षा की सबसे अच्छी और थोड़ी सतर्क रहने वाली बात यह थी कि इसमें संस्थान के सभी प्रोफेसर, छात्र मेरे शोध कार्य प्रस्तुति को देख सकते थे और मुझसे प्रश्न पूछ सकते थे। लेकिन शोध कार्य की अच्छी समझ और डॉ. जी महेश एवं डॉ. फूलदीप कुमार के मार्गदर्शन ने मौखिक परीक्षा वाले दिन आत्मविश्वास में कमी नहीं आने दी और इस स्तर को भी पार कर पी-एच.डी. की राह में सफलता प्राप्त की। 3 मई, 2024 को एसीएसआईआर (AcSIR) से पीएचडी का प्रमाण पत्र (AcSIR) भी प्राप्त हो गया।
इस दौरान मुझे सीएसआईआर-निस्पर (CSIR-NIScPR) का भी भरपूर सहयोग मिला। वहां के समन्वय डॉ. विपिन कुमार ने मुझे अंग्रेजी भाषा में भी शोध पत्र लेखन के लिए प्रोत्साहित किया। संस्थान के अन्य सदस्यों कुमारी कीर्ति, श्री योगेश चंद्र, श्री पुलकित आदि ने प्रशासनिक कार्यों को सहजता से पूर्ण करने में सहयोग किया। विज्ञान प्रगति के पूर्व संपादकों डॉ. प्रदीप कुमार, श्री बालकराम जी और वर्तमान संपादक डॉ. मनीष मोहन गोरे एवं सहायक संपादक श्रीमती शुभदा कपिल ने भी इस शोध में अहम सहयोग किया। पूरे शोध कार्य में मेरे अभिन्न मित्र और जनसंचार एवं न्यू मीडिया विभाग, जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रमुख डॉ. अभय राजपूत का सहयोग एवं सुझाव अहम साबित हुए।
अंग्रेजी शोध प्रबंध की भाषा शैली में वरिष्ट विज्ञान पत्रकार श्री सुंदरराजन पदमनाभन, विज्ञान संचारक डॉ. बिजु धर्मपालन, विज्ञान संचारक डॉ. अदिति जैन, विज्ञान संपादक अल्पना साहा और बायोटेक एक्प्रेस पत्रिका के प्रकाशक कमल प्रताप सिंह ने महत्वपूर्ण सहयोग किया।
इस शोध कार्य में लोकप्रिय पत्रिका “विज्ञान प्रगति” में 1952 से 2020 तक प्रकाशित लेखों एवं पत्रिका द्वारा प्रकाशित की गई प्रमुख वैज्ञानिक घटनाओं के विश्लेषण सहित पुरुष और महिला लेखकों के योगदान और लेखों की पठनीयता संबंधी विश्लेषण किया गया है। विज्ञान प्रगति के पाठकों और लेखकों का एक सर्वेक्षण भी किया गया है। अध्ययन के परिणामों का उपयोग, लोकप्रिय विज्ञान पत्रिकाओं की गुणवत्ता में सुधार लाने और विज्ञान संचार में नीतिगत दस्तावेज तैयार करने में भी किया जा सकता है।
• अध्ययन से पता चलता है कि लोकप्रिय विज्ञान लेखन में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में कम है।
• हिन्दी पाठ की पठनीयता, तकनीकी शब्दों, शब्दों की लंबाई, वाक्यों की लंबाई और वाक्यों की कुल संख्या पर निर्भर करती है।
यह शोध कार्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020 और संविधान में दिए गए मौलिक कर्तव्ययों में से एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रसार की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
–फोटो साभार: विज्ञान प्रगति, मई अंक, 2024
–डॉ. नवनीत कुमार गुप्ता

2 Comments
  1. इस उपलब्धि के लिए आपको बारम्बार बधाई।

  2. संजीव ओझा 2 weeks ago
    Reply

    हार्दिक शुभकामनाएं

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