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कैसे होगा अंतरिक्ष में पिकनिक मनाना आसान? (#SpacePicnic)

अब आप अंतरिक्ष में भी जा कर पिकनिक मना सकते हैं। अगले साल से NASA International Space Station को commercial use के लिए खोल रहा है और पर्यटन के लिए लोग इसका किराया चुका कर space station पर जा सकते है। International Space Station पृथ्वी के lower orbit में स्थित है जो कि लगभग 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित होता है। इस Space Station को NASA, Russian Space Agency, JAXA Japan, ESA Europe और CSA Canada ने मिलकर 1998 में स्थापित किया था। इसे November 2000 से ही लगातार अंतरिक्ष यात्रियों के रहने के लिए प्रयोग किया जा रहा है। अभी तक यहाँ सिर्फ अंतरिक्ष से जुड़े शोध के लिए ही अनुमति थी और इसके व्यावसायिक इस्तेमाल पर रोक थी। यहाँ तक की research में भी हिस्सा नहीं ले सकते थे। लेकिन अब दो निजी कंपनियों को इसके लिए नियुक्त किया गया है…. ये कंपनियां पर्यटन या अन्य व्यावसायिक कम्पनियों के अंतरिक्ष यात्रियों को किराया चूका कर यहाँ ले जा सकेगी। इसके लिए प्रति flight उन्हें 6 करोड़ dollar किराया देना होगा।

क्या है डीआरडीओ का हाइपरसोनिक एयरव्हीकल (DRDO #HSTV)?

भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान ने स्वदेशी मिसाइल प्रोग्राम में एक नई उपलब्धि हासिल की है, डीआरडीओ ने बुधवार को उड़ीसा के डॉ अब्दुल कलाम आईलैंड से हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमोन्स्ट्रेटर व्हीकल का सफ़लतापूर्वक लॉच किया गया, इस टेस्ट की सफ़लता से भविष्य में न केवल हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल बनाने में आसानी होगी बल्कि इसके ज़रिये काफ़ी कम खर्च में सैटेलाइट लॉन्चिंग भी की जा सकेगी.
सूत्रों के मुताबिक एक टन वज़नी और 18 फीट लंबे इस एयरव्हीकल को अग्नि 1 मिसाइल से लॉन्च किया गया. इसे एचएसटीडीवी को एक ख़ांस ऊंचाई तक पहुंचाना था जिसके बाद स्क्रैमजेट इंजन अपने आप चालू होता और वो व्हीकल को 6 मैक की रफ्तार तक पहुंचाता है । भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा हासिल की गई इस उपलब्धि के बाद भारत रूस, अमेरिका औऱ चीन के बाद हाईपरसोनिक तकनीक रखने वाला चौथा देश बन गया है ।

किसने जीता रोबोकॉन 2019 का नेशनल फाइनल? (#Robocon 2019 IIT Delhi)

16 जून को आईआईटी दिल्ली में इस साल का रोबोकॉन नेशनल फाइनल कंपटीशन आयोजित किया गया, एबीयू रोबोकॉन 2019 का अंतर्राष्ट्रीय कंपटीशन 25 अगस्त को मंगोलिया की राजधानी उलानबातर में होगा जहां तक़रीबन 17 देशों से जीत कर आई टीमें हिस्सा लेंगी, इस साल का थीम भी मंगोलिया के प्राचीन कम्यूनिकेशन सिस्टम उर्तू पर रखा गया है, राष्ट्रीय स्तर पर कंपटीशन के लिए 26 टीमें सेलेक्ट हुई थीं, आईआईटी के लेक्टर हाल में इनके बीच मुकाबले रखे गए, हर टीम को इस बार 2 रोबोट तैयार करने थे एक मैन्युअल और दूसरा ऑटोमेटिक, इंजीनियरिंग और टेक्निकल यूनिवर्सिटीज़ के स्टूडेंट्स द्वारा तैयार इन रोबोट्स ने विशेषज्ञों को काफ़ी प्रभावित किया, और यही इस कंपटीशन का मक़सद भी है, इंजीनिरिंग के क्षेत्र में इनोवेशन और दक्षता को बढावा देना साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अन्य देशों के आइडियाज़ को समझना, 16 जून को हुए कंपटीशन में एलडी कॉलेज आफ़ इंजीनियरिंग अहमदाबाद ने निरमा यूनिवर्सिटी अहमदाबाद को हरा कर अंतर्राष्ट्रीय कंपटीशन में जगाह बना ली, विनर टीम को रोबोकॉन पार्टनर दूरदर्शन की तरफ़ से स्पांसर किया जाएगा ।

कैसे हमारे शरीर में पहुंच रहा है प्लास्टिक? (#microplastic)

जब प्लास्टिक बैन करने की बात होती है तो हमें लगता है की प्लास्टिक से हमें क्या नुकसान होता है हमें तो फायदा ही होता है लेकिन क्या आप जानते हैं हर इंसान एक साल में 10 हजार माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े खा लेता है या फिर सांसों के जरिए उसके शरीर में पहुँचता है।
माइक्रोप्लास्टिक यानी इंसान के बनाए प्लास्टिक के छोटे छोटे टुकड़े धरती पर इस वक्त हर जगह मौजूद हैं. सिंथेटिक कपड़ों, कार के टायरों या कांटैक्ट लेंस या रोजमर्रा काम आने वाली किसी और चीज से माइक्रोप्लास्टिक के कण वातावरण में फलते हैं . दुनिया के सबसे ऊंचे पहाड़ों में मौजूद ग्लेशियरों से लेकर समंदर की गहरी से गहरी खाइयों तक में यह मौजूद हैं.
बीते दिनों हुई कई रिसर्चों से पता चला है कि किस तरह माइक्रोप्लास्टिक इंसान की खाद्य श्रृंखला में घुस सकता है. हाल में कनाडा के वैज्ञानिकों ने रिसर्च के दौरान माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी के बारे में सैकड़ों आंकड़ों के विश्लेषण किया।
इंसान के शरीर पर माइक्रोप्लास्टिक का क्या असर होता है यह अभी ठीक से समझा नहीं गया है. हालाँकि एलेस्टेयर ग्रांट यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंगलिया में इकोलॉजी के प्रोफेसर का कहना है कि रिसर्च में जिन प्लास्टिक कणों की पहचान कि गई है उनसे “इंसान के स्वास्थ्य को बहुत खतरा होने” की बात अब तक सामने नहीं आई है. उनका कहना है सांस के जरिए शरीर में जाने वाली प्लास्टिक का एक बहुत छोटा हिस्सा ही वास्तव में फेफड़ों तक पहुंचता है.
माइक्रोप्लास्टिक को इंसान के शरीर में पहुंचने से रोकने का सबसे कारगर तरीका यही होगा कि प्लास्टिक का निर्माण और उपयोग घटाया जाए.

तो ये थी इस हफ्ते की कुछ रोचक और ज्ञानवर्धक ख़बरें उम्मीद है आपको हमारी ये जानकारियां ज़रूर पसंद आई होंगी, तो फ़ौरन इस कार्यक्रम को लाइक और शेयर करें और हमारे चैनल न्यूज़ इन साइंस को सब्स्क्राइब करना न भूलें। आज के लिए इतना ही नमस्कार

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