बृहस्पति ग्रह के बर्फीले चंद्रमाओं के अध्ययन के लिए यूरोपीय स्पेस एजेंसी का जूपिटर आईसी मून्स एक्सप्लोरर (Juice) मिशन सफलतापूर्वक लॉन्च हो गया है। जूस (Juice) उपग्रह को फ्रेंच गुयाना में कौरू स्पेसपोर्ट से एरियन -5 रॉकेट के जरिए रवाना किया गया। इस लॉन्च के साथ ही यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने राहत की सांस ली है। गुरुवार को खराब मौसम के चलते प्रक्षेपण के समय को आगे बढ़ाना पड़ा था।
उपग्रह ने लॉन्च व्हीकल से अलग होने के बाद पहली सेल्फी भी भेजी है। वहीं उपग्रह की विशाल सोलर एरे सिस्टम भी सही ढंग से तैनात हो गए। एजेंसी के महानिदेशक डॉ जोसेफ एशबैकर ने कहा कि हमारा मिशन अपने गंतव्य की ओर आगे बढ़ रहा है लेकिन हमें लंबी दूरी तय करनी है। हमें उपग्रह के सभी उपकरणों की जांच करनी है। इससे यह पता लगेगा कि ये उपकरण सही तरीके से काम कर रहे हैं ताकि हमारा लक्ष्य पूरा हो सके। मिशन पर करीब 1.7 अरब डॉलर का खर्च आया है।
क्यों अहम है मिशन
बृहस्पति हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। मिशन का मकसद बृहस्पति के कैलिस्टो, गेनीमेड और यूरोपा जैसे प्रमुख चंद्रमाओं का अध्ययन करना है। माना जा रहा है कि यहां बड़े पैमाने पर पानी तरल रूप में उपलब्ध है। वैज्ञानिक यह भी पता लगाना चाहते हैं कि क्या इन चंद्रमाओं पर जीवन भी है। यह काल्पनिक लग सकता है। बृहस्पति हमारे सौर मंडल के बाहरी हिस्से में है। इसलिए सूर्य से बहुत दूर है और ठंडा है। यहां पृथ्वी तक पहुंचने वाली सूर्य की रोशनी का एक-चौथाई हिस्सा ही पहुंच पाता है। लेकिन गैस के विशाल गुरुत्वाकर्षण का उसके चंद्रमाओं पर पड़ने का मतलब है कि यहां सरल पारिस्थितिक तंत्र को चलाने के लिए संभावित रूप से ऊर्जा और गर्मी है। कुछ-कुछ वैसा ही जैसा कि पृथ्वी के समुद्र तल पर ज्वालामुखी के आसपास मौजूद है।
ऐसे होगा अध्ययन
हालांकि एरियन के पास Juice को सीधे उसके गंतव्य तक भेजने की क्षमता नहीं है। इसके बजाय, रॉकेट ने अंतरिक्ष यान को आंतरिक सौर मंडल के चारों ओर एक पथ पर भेज दिया है। शुक्र और पृथ्वी के फ्लाई-बाई की एक श्रृंखला इस मिशन को उसके इच्छित गंतव्य तक गुरुत्वाकर्षण से ले जाएगी। यह 8.5 साल तक चलने वाली 6.6 बिलियन किमी की यात्रा है। मिशन के जुलाई 2031 में जोवियन सिस्टम में आने की उम्मीद है। Juice दूर से ही चंद्रमाओं का अध्ययन करेगा। कहने का मतलब है कि यह उनकी सतहों पर उड़ेगा, उतरेगा नहीं। मिशन का लक्ष्य सौर मंडल के सबसे बड़े चंद्रमा गेनीमेड का अध्ययन करना है। उपग्रह साल 2034 में इसका चक्कर लगाकर अपना काम खत्म करेगा।
मिशन में कई उपकरण
चंद्रमाओं का अध्ययन रडार की मदद से किया जाएगा। लेजर मेजरमेंट डिवाइस लिदार (lidar) की मदद से इन चंद्रमाओं के सतह के 3D मैप तैयार किए जाएंगे। मैग्नेटोमीटर उनके जटिल विद्युत और चुंबकीय वातावरण का पता लगाएगा। अन्य सेंसर चंद्रमा के चारों ओर चक्कर लगाने वाले कणों पर डेटा एकत्र करेंगे। साथ ही अनगिनत तस्वीरें वापस भेजी जाएंगी। यह सब पृथ्वी से करोड़ो किलोमीटर दूर होगा जहां रोशनी बहुत कम होगी। सैटेलाइट में सोलर विंग हैं जो इसे जरूरी रोशनी देंगे। मिशन का मकसद संभावित जीवन के बारे में अधिक जानकारी एकत्र करना है ताकि बाद के मिशन जीवन प्रश्न को और अधिक सीधे तरीके से संबोधित कर सकें।
ऐसे हुई थी बृहस्पति के चंद्रमाओं की खोज
सन 1610 में इतालवी खगोलशास्त्री गैलीलियो गैलीली ने टेलीस्कोप का उपयोग करके बर्फ से ढके कैलिस्टो, गेनीमेड और यूरोपा की खोज की थी। उन्हें बृहस्पति के चारों ओर घूमने वाले छोटे बिंदुओं के रूप में देखा गया था। इन तीनों बर्फीले चंद्रमाओं के व्यास की रेंज 4800 से 5300 किमी है। जबकि पृथ्वी के चंद्रमा का 3500 किमी है।