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चंद्रयान-3: सॉफ्ट लैंडिंग से ठीक पहले का समय है अहम, होंगे कई ज़रूरी काम

दिल थाम कर बैठिए….सांसें रोक कर देखिए…. 23 अगस्त को चंद्रयान-3 जब चांद की जमीं को चूमेगा, तो उससे पहले के 15 मिनट बहुत ज्यादा अहम होंगे। यह वही समय होगा, जो भारत को इतिहास रचने के करीब ले जाएगा। वह चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ़्ट लैंडिंग कराने वाला पहला देश बन जाएगा। आइए आपको बताते हैं कि ये चंद्रयान-3 का सबसे अहम फेज क्यों है।

चंद्रमा पर लैंडर को उतारना पेचीदा मामला है। यान 30 किलोमीटर की ऊंचाई से 15 मिनट के भीतर चांद की सतह पर उतरेगा। चूंकि वहां हवा नहीं है, इसलिए नीचे आते यान की गति को कम करने के लिए पैराशूट या ऐसे उपकरण का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। इस काम को लैंडर के अंदर मौजूद चार रॉकेट की मदद से अंजाम दिया जाएगा। गति को कम करने, लैंडर के ऑरिएंटेशन को बदलने और इसे सॉफ्ट-लैंड करने में मदद करने के लिए चार रॉकेट का इस्तेमाल होगा। ये रॉकेट लैंडर के भीतर लगे हैं। यान को चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित तरीके से लाने के लिए सात जरूरी काम किए जाएंगे।

हॉरिजॉन्टल गति को कम करना

उद्देश्य: सॉफ्ट लैंडिंग के लिए यान की हॉरिजॉन्टल गति को कम करना

अवधि: 690 सेकंड

ये काम किए जाएंगे:

चांद की सतह से यान की ऊंचाई 30 किमी से घटाकर 7.4 किमी तक की जाएगी।

यान के पैर क्षैतिज (हॉरिजॉन्टल) स्थिति में रहेंगे।

चंद्रयान-3 के निचले हिस्से में मौजूद चार रॉकेट जलेंगे। जैसे ही यहां से निकलने वाली गैस यान की गति की दिशा की ओर बहेगी, गति की दिशा के विपरीत एक आवेग उत्पन्न होगा।

प्रतिरोधी आवेग के असर से यान की क्षैतिज गति लगभग 6,000 किमी प्रति घंटे से घटकर लगभग 1,288.8 किमी प्रति घंटे रह जाएगी। साथ ही, यह शून्य से 219.6 किमी प्रति घंटे तक की ऊर्ध्वाधर (वर्टिकल) गति को हासिल करेगा।

यान लैंडिंग वाली जगह से लगभग 745 किमी दूर से चलना शुरू करेगा। यह काम खत्म होने के आखिर तक, जहाज लैंडिंग वाली जगह से महज 32 किमी दूर होगा।

इस दौरान यान के सभी चारों इंजन चालू रहेंगे।

माइक्रो-स्टार सेंसर और लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा (LPDC) नेविगेशन से जुड़ी जानकारी देगा।

एलटीट्यूड को बनाए रखना

उद्देश्य: वर्टिकल गति को कम करना और ओरिएंटेशन को बदलना

अवधि: 10 सेकंड

ये काम किए जाएंगे:

क्षैतिज गति लगभग 1,288.8 किमी प्रति घंटे से घटकर 1,209.6 किमी प्रति घंटे रह जाएगी; ऊर्ध्वाधर गति 219.6 किमी प्रति घंटे से घटकर 212.4 किमी प्रति घंटे हो जाएगी।

चंद्रमा की सतह से यान की दूरी 7.4 किमी से घटकर 6.8 किमी रह जाएगी।

यान का ओरिएंटेशन लगभग 50 डिग्री झुका हुआ होगा और पैर बगल में होंगे।

इस चरण के आखिर में यान लैंडिंग वाली जगह से सिर्फ 28.52 किमी दूर होगा।

फ़ाइन ब्रेकिंग फेज

उद्देश्य: यान की गति को धीमा करना और इसे चंद्रमा की सतह से लगभग 800 मीटर ऊपर रोकना।

अवधि: 175 सेकंड और 800 मीटर की ऊंचाई पर 12 सेकंड तक घूमना

ये काम किए जाएंगे:

यान की दूरी चांद की सतह से 6.8 किमी से घटकर लगभग 800 मीटर रह जाएगी।

आखिरी बिंदु पर यान की क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर गति शून्य हो जाएगी। यान चंद्रमा की सतह पर एक बिंदु के ऊपर मंडरा रहा होगा। यह न तो ऊपर जाएगा और नहीं नीचे आएगा। न पीछे जाएगा और न ही आगे खिसकेगा।

यान इस बिंदु पर करीब 12 सेंकड तक होवर करेगा।

यान का ओरिएंटेशन 90 डिग्री हो जाएगा। वहीं इसके पैर नीचे की तरफ हो जाएंगे।

यान लैंडिंग साइट पर पहुंच जाएगा और यह इस जगह के ठीक ऊपर होगा।

खतरे का पता लगाने और इससे बचने की तैयारी की जाएगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से चलने वाला सॉफ्टवेयर लैंडिंग साइट के भीतर बड़े पत्थरों, गहरे छेद और खड़ी ढलानों से मुक्त सुरक्षित क्षेत्र की पहचान करेगा।

लेजर अल्टीमीटर (LASA) और का-बैंड अल्टीमीटर (KaRA) यान की ऊंचाई को मापेंगे। लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा (LPDC) इसकी जगह के बारे में जानकारी देगा। लेजर डॉपलर वेलोसीमीटर (LDV) यान की गति को मापेगा। यान इन मापदंडों के आधार पर लैंडिंग साइट की ओर बढ़ेगा।

यान के नीचे आने का पहला फेज

उद्देश्य: लैंडिंग के लिए सही जगह की पहचान करना।

अवधि: 131 सेकंड तक नीचे आएगा और 22 सेकंड तक सतह से 150 मीटर ऊपर होवर करेगा

ये काम किए जाएंगे

यान धीरे-धीरे चंद्रमा की सतह से 150 मीटर ऊपर तक आएगा।

चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण यान को नीचे की ओर खींचेगा, जबकि जमीन की ओर स्थित रॉकेट विपरीत दिशा में गति बढ़ाएगा। रॉकेट के थ्रोटल को बढ़ाने और घटाने से नीचे उतरने की गति नियंत्रित रहेगी। यान आराम से 18 किमी प्रति घंटे की गति से नीचे उतरेगा।

यान को लगभग 800 से 150 मीटर तक नीचे आने में 131 सेकंड का समय लगेगा।

इस चरण के दौरान, लैंडिंग वाली जगह की जांच कई उपकरणों से की जाएगी। खतरा टालने वाला कैमरा बुहत तेज़ी से अपने काम को अंजाम देगा।
लगभग 22 सेकंड तक इस बिंदु के ऊपर मंडराते हुए, एआई-संचालित सिस्टम उस बिंदु के 150 मीटर के दायरे में लैंडिंग के लिए सुरक्षित जगहों की पहचान करने के लिए सतह को स्कैन करेगा।

लैंडर हैज़र्ड डिटेक्शन एंड अवॉइडेंस कैमरा (LHDAC) लैंडिंग साइट पर खतरों की पहचान करने और कई सुरक्षित जगहों का सुझाव देने के लिए सक्रिय हो जाएगा।

• सुरक्षित जगहों की तुलना की जाएगी, और उनमें से सबसे अच्छी जगह चुनी जाएगी।

यान के नीचे आने का दूसरा फेज

उद्देश्य: यान को 60 मीटर की ऊँचाई पर लाना और लैंडिंग के लिए सुरक्षित जगह चुनना।

अवधि: 521 सेकंड

ये काम किए जाएंगे

जैसे ही यह काम शुरू होगा, एआई से चलने वाला सॉफ्टवेयर सुरक्षित और सबसे अच्छी लैंडिंग जगहों की पहचान करेगा।

रॉकेट के थ्रॉटल को नीचे की ओर बल देने के लिए इसमें बदलाव किया जाएगा। जैसे-जैसे यान धीरे-धीरे नीचे उतरेगा, यह लैंडिंग के लिए चुनी गई जगह के ऊपर वाले स्थान तक पहुंचने के लिए बग़ल से चलेगा।

खतरे का पता लगाने और नेविगेशन सिस्टम और कई उपकरण जो नीचे उतरने की गति को मापेंगे, वे अपना काम शुरू कर देंगे।

लेजर डॉपलर वेलोसीमीटर (LDV) और लैंडर हॉरिजॉन्टल वेलोसिटी कैमरा (LHVC) नीचे उतरने की गति की जांच करने में मदद करेंगे।

यान की सॉफ्ट-लैंडिंग का तीसरा फेज

उद्देश्य: सॉफ्ट लैंडिंग के लिए यान की गति को कम करना।

अवधि: 38 सेकंड

ये काम किए जाएंगे

यान सीधे लैंडिंग के लिए चुनी गई जगह पर उतरेगा। इस वक्त तक यान की गति महज 4.7 किमी प्रति घंटा रह जाएगी।

सतह से यान की की दूरी 60 मीटर से घटकर 10 मीटर रह जाएगी।

जब यान चांद की सतह से महज 10 मीटर ऊपर होगा तो लैंडर के सभी इंजन बंद कर दिए जाएंगे।

यान की सॉफ्ट-लैंडिंग का चौथा फेज (अपने आप नीचे आना)

उद्देश्य: लैंडर को चांद की सतह पर सुरक्षित तरीके से उतारना।

अवधि: 9 सेकंड

ये काम किए जाएंगे

एक बार जब यान चंद्रमा की सतह से 10 मीटर ऊपर होगा, तो सभी रॉकेट बंद कर दिए जाएंगे। अब यहां से चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण अपना कमाल दिखाएगा। जहाज पत्थर की तरह चंद्रमा की सतह की ओर गिरेगा।

जमीन को छूते ही लैंडर के पैरों में लगे सेंसर चालू हो जाएंगे।

टचडाउन के करीब 1.25 सेकंड बाद बेंगलुरु स्थित इसरो ग्राउंड कंट्रोल से इसकी पुष्टि हो जाएगी।

यान के गिरने से चंद्रमा की सतह से धूल का गुबार उठेगा।

रोवर का बाहर आना

उद्देश्य: रोवर को चांद की सतह पर लाना

अवधि: सॉफ्ट लैंडिंग के कुछ घंटे बाद

ये काम किए जाएंगे

  • लैंडिंग के बाद धूल का जो गुबार उठेगा उसका असर खत्म होने में कुछ घंटे लगेंगे।

    कुछ घंटों के बाद, यान की दीवारों में से एक खुल जाएगी और नीचे गिर जाएगी। इससे रोवर के लुढ़कने के लिए एक तिरछा रैंप बन जाएगा।

    चरखे वाले सिस्टम का इस्तेमाल करके रोवर को धीरे-धीरे जमीन पर छोड़ा जाएगा। जैसे ही रोवर चंद्रमा की सतह को छूएगा, रस्सी अलग हो जाएगी।

    इसके बाद लैंडर रोवर की एक तस्वीर लेगा। इस दौरान रोवर भी लैंडर की तस्वीर लेगा। ये तस्वीरें हमें बताएंगी कि लैंडर और रोवर बेहतर तरीके से काम कर रहे हैं।

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