दुनिया भर में डायबिटीज सबसे बड़े खतरे के रूप में सामने आ रहा है। द लैंसेट पत्रिका के हाल के एक अध्ययन में इसके संकेत मिले हैं। इसके मुताबिक साल 2050 तक दुनिया भर में 131 करोड़ लोग डायबिटीज से पीड़ित होंगे। यह स्टडी लैंसेट में प्रकाशित हुई है। निश्चित तौर पर स्टडी के आंकड़े चिंता पैदा करने वाले हैं। अगर भारत की बात करें, तो एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि यहां 10 करोड़ से अधिक लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं। आईसीएमआर से लैंसेट के लिए मिलकर ये स्टडी कुछ दिन पहले ही की थी।
फिलहाल ये हैं आंकड़े
जानकारों का कहना है कि, 2021 में 50 करोड़ से अधिक लोग डायबिटीज से पीड़ित थे। साल 2050 तक यह आंकड़ा 131 करोड़ तक पहुंच सकता है। इसकी वजह मोटापे से पीड़ित लोगों की संख्या में नाटकीय रूप से बढ़ोतरी होना है। जिसके कारण डायबिटीज के मामलों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है।
साल 2021 में, लोगों को टाइप-2 डायबिटीज होने का कारण मुख्य रूप से ज्यादा बीएमआई, पर्यावरणीय और व्यावसायिक जोखिम, आहार संबंधी जोखिम, तंबाकू या शराब का इस्तेमाल और कम शारीरिक गतिविधि जैसे सामाजिक कारक थे। लगभग 90 प्रतिशत डायबिटीज का प्रकार टाइप-2 पाया गया।
अध्ययन के निष्कर्ष
•निम्न या मध्यम आय वाले देशों में, साल 2045 तक चार में से कम से कम तीन वयस्क मधुमेह के साथ जी रहे होंगे।
• कम आय वाले कई देशों में डायबिटीज के उचित उपचार तक पहुंच नहीं है। लैंसेट अध्ययन में कहा गया है कि उन देशों में सिर्फ 10 प्रतिशत लोग ही डायबिटीज के लिए दिशानिर्देश-आधारित देखभाल प्राप्त कर पाते हैं जो कि बहुत कम संख्या है।
• निम्न से मध्यम आय वाले देशों के हाशिए पर रहने वाले लोग इस बीमारी से सबसे ज्यादा पीड़ित होंगे।
• संयुक्त राज्य अमेरिका में, जहां युवाओं में टाइप 2 मधुमेह का बोझ पिछले 20 वर्षों में लगभग दोगुना हो गया है।
कहां खड़ा है भारत
इन सबके बीच भारत का भविष्य कहां है? भारत में 10 करोड़ लोग पहले से ही डायबिटीज से पीड़ित हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि प्री-डायबिटीज वाले लोगों के मामले और भी चिंताजनक हैं।
मद्रास डायबिटीज रिसर्च सेंटर द्वारा किए गए और इस महीने की शुरुआत में लैंसेट में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, “कम से कम 11.4 प्रतिशत भारतीयों को मधुमेह है और यह 10 करोड़ से अधिक लोग हैं।” इस पहले व्यापक अध्ययन में 31 भारतीय राज्यों के 113,000 से अधिक प्रतिभागी शामिल थे।