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भारत की जैव-अर्थव्यवस्था 300 अरब डॉलर को छूने को तैयार- डॉ. जितेंद्र सिंह

भारत की जैव-अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है। साल 2030 तक यह 300 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगी। अपने बढ़ते इनोवेशन और वैज्ञानिक प्रकृति के साथ, भारत एक नई औद्योगिक क्रांति की वैश्विक लहर में शामिल होने के लिए तैयार है। ये बातें केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने “जैव-विनिर्माण पर मसौदा नीति ढांचा बनाने के लिए जैव-विनिर्माण पर राष्ट्रीय परामर्श बैठक” में मुख्य अतिथि के रूप में कही।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, सरकार देश में ‘उच्च प्रदर्शन वाले जैव-विनिर्माण’ को आगे बढ़ाकर सर्कुलर-जैव-अर्थव्यवस्था को सक्षम करने के लिए प्रतिबद्ध है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) हरित, स्वच्छ और समृद्ध भारत के लिए बायोई3 (यानी अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी) के विभाग के एक प्रमुख लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति को एक साथ लाने की परिकल्पना करता है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत आगामी ‘अमृतकाल’ में “हरित विकास” की कल्पना करता है और इसके लिए हमारे देश में चल रहे आर्थिक विकास को और बढ़ावा देने के लिए मजबूत इनोवेशन जैव-आधारित पर्यावरण-अनुकूल समाधानों के कार्यान्वयन के लिए व्यवस्थित रूपरेखा योजना की जरूरत है। मंत्री ने कहा कि इसके अतिरिक्त, 20 अक्टूबर, 2022 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुभारंभ किया गया “मिशन लाइफ” यानी ‘लाइफस्टाइल फॉर द एनवायरनमेंट (लाइफ)’ हमें जलवायु और ऊर्जा लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से प्राप्त करने के लिए जीवन के हर पहलू में हरित और अनुकूल पर्यावरणीय समाधानों को आगे बढ़ाने का आग्रह करता है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने यह भी कहा कि यह कार्यक्रम घरेलू विनिर्माण (उद्योग 4.0) का समर्थन करके ‘मेक इन इंडिया’ को मजबूत करेगा। इसके अलावा, यह जैव-विनिर्माण के क्षेत्र में कुशल वर्कफोर्स के विकास, विशेष रूप से दो और तीन-स्तरीय शहरों में रोजगार सृजन और उद्यमिता में वृद्धि और बाजार के अवसरों का विस्तार करने के लिए बायोजेनिक उत्पादों के लिए नीतियों और विनियमों को कारगर बनाने का भी काम करेगा। उन्होंने बताया कि यह नवीकरणीय संसाधनों से उच्च गुणवत्ता, रीसायकल योग्य वस्तुओं का निर्माण करके रासायनिक व्यवसायों को राजस्व सृजन के नए अवसर प्रदान करेगा।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि जैव-विनिर्माण नवोन्मेष, ऊर्जा कुशल और कम प्रदूषण के कारण एक बड़ी क्षमता प्रदान करता है, क्योंकि यह व्यावसायिक रूप से प्रासंगिक उत्पादों का उत्पादन करने के लिए रोगाणुओं, पौधों की कोशिकाओं और एंजाइमों सहित जैविक प्रणालियों को नियोजित करता है।

डीबीटी के सचिव डॉ. राजेश गोखले ने कहा कि भारत कच्चे तेल का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा आयातक और तरलीकृत प्राकृतिक गैस का चौथा सबसे बड़ा आयातक है, जिसका एक बड़ा हिस्सा रासायनिक औद्योगिक निर्माण में उपयोग किया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि जीवाश्म ईंधन के प्रमुख घटक हाइड्रोकार्बन को जलाने से सीओ2 एक प्रमुख उप-उत्पाद के रूप में निकलती है, जो ग्लोबल वार्मिंग में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

डॉ. गोखले ने कहा कि 2027 तक भारत को ‘नेट जीरो’ कार्बन इकोनॉमी’ बनाने के प्रधानमंत्री मोदी के दृष्टिकोण के संदर्भ में, हम बायो-मैन्युफैक्चरिंग के एक एकीकृत और समावेशी दृष्टिकोण को अपनाकर बायो-बेस्ड सर्कुलर कार्बन इकोनॉमी की ओर एक आदर्श बदलाव की उम्मीद करते हैं।

जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) की वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अलका शर्मा ने रेखांकित किया कि इस दृष्टिकोण के माध्यम से उद्योग 4.0 के लिए विनिर्माण का एक अभिनव ‘प्लग एंड प्ले’ मॉडल प्रस्तावित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस पहल के केंद्र में बायोटेक्नोलॉजी के उन्नत उपकरण शामिल हैं जिनमें सिंथेटिक बायोलॉजी, जीनोम एडिटिंग, मेटाबोलिक इंजीनियरिंग आदि शामिल हैं।

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