भारत का राष्ट्रीय जलवायु अनुसंधान कार्यक्रम जारी कर दिया गया है। इसे आईआईटी बॉम्बे में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के जलवायु अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र में दो दिन की अंतर्राष्ट्रीय जलवायु अनुसंधान बैठक (आईसीआरसी-2023) के उद्घाटन अवसर पर जारी किया गया। यह कार्यक्रम वर्ष 2030 और उसके बाद के समय में जलवायु परिवर्तन को समझने तथा उससे संबंधित मुद्दों को हल करने की दिशा में राष्ट्रीय प्रयासों के समन्वय को लिए आगे का रास्ता बताता है।
जलवायु परिवर्तन का असर शुरू
इस अवसर पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव डॉ. एस. चंद्रशेखर ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान ने पहले से ही अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। इस दिशा में हमारी कार्रवाई में देरी हुई है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान मानव व्यवहार में परिवर्तन के चलते पर्यावरण में सकारात्मक बदलाव के हमारे अनुभवों के जरिये किसी भी स्थिति से निपटने के लिए आवश्यक सबक लिया जा सकता है। डॉ. एस. चंद्रशेखर ने कहा कि ये सभी पहल एक अनुस्मारक के रूप में काम करती हैं। उन्होंने कहा कि अगर हम जिम्मेदारी के भाव से काम करते हैं, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए धरती पर जीवन बनाए रखने की स्वाभाविक संभावना बनी हुई है।
डॉ. चंद्रशेखर ने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन से निपटना केवल जलवायु वैज्ञानिकों की जिम्मेदारी नहीं है। उन्होंने इसे सामूहिक कर्तव्य बताया, जो समाज के सभी व्यक्तियों और क्षेत्रों पर समान रूप से लागू होता है। डॉ चंद्रशेखर ने बताया कि जलवायु विज्ञान के आसपास की बाह्य गतिविधियों से जलवायु चक्र प्रभावित होता है। उन्होंने कहा, ऐसी स्थिति में यह वैज्ञानिकों का कर्तव्य बन जाता है कि वे उन क्षेत्रों की पहचान करें, जो जलवायु पर सबसे जरूरी असर डालते हैं और उन्हें कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
“भारत का जलवायु अनुसंधान कार्यक्रम: 2030 और उसके आगे” विषय पर रिपोर्ट जारी करते हुए उन्होंने कहा कि यह एक अधिक स्थायी एवं लचीला विश्व बनाने में सामूहिक भूमिका निभाने के उद्देश्य से सभी के लिए कार्रवाई का आह्वान है।
नीतिगत फैसलों का महत्व
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम रविचंद्रन ने क्रायोस्फीयर और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने जल संसाधन, अत्यधिक वर्षा, भीषण गर्मी की स्थिति और समुद्री लहरों जैसे विभिन्न पहलुओं से निपटने के लिए नीतिगत निर्णय लेने के महत्व पर प्रकाश डाला। सचिव ने कहा कि बेहतर नीतिगत निर्णय लेने की सुविधा के लिए इन जटिलताओं को कम अनिश्चितता के साथ परिमाणित एवं संप्रेषित करने की आवश्यकता है।
डॉ. रविचंद्रन ने आर्कटिक, अंटार्कटिक और हिमालय सहित विभिन्न क्षेत्रों व निकायों के बीच अंतर्संबंधों का उल्लेख किया, क्योंकि वे सीधे जल प्रपातों को प्रभावित करते हैं। उन्होंने बताया कि इन सभी चिंताओं को स्वीकार करते हुए इस सम्मेलन का उद्देश्य ऐसी कई महत्वपूर्ण सिफारिशों को जारी करना है, जो पूरे देश को लाभान्वित करेंगी।
डॉ. एम रविचंद्रन ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय जलवायु अनुसंधान बैठक उन सिफारिशों पर चर्चा करने और उन्हें प्रस्तावित करने के लिए एक मंच के रूप में काम करती है, जिनका प्रभावी नीति निर्माण में विशेष योगदान रहेगा। उन्होंने कहा कि इन जटिल चुनौतियों का समाधान करके और कार्रवाई योग्य इनसाइट प्रदान कर सम्मेलन का उद्देश्य नीतिगत निर्णय लेने में ज्यादा प्रभावी बनाना तथा अधिक टिकाऊ एवं लचीले भविष्य की राह में पूरे देश को लाभान्वित करना है।
देश और दुनिया भर के विभिन्न हिस्सों के 200 से अधिक जलवायु वैज्ञानिक, छात्र, विशेषज्ञ तथा नीति निर्माता अंतर्राष्ट्रीय जलवायु अनुसंधान बैठक (आईसीआरसी-2023) में भाग लिया, ताकि जलवायु अनुसंधान के क्षेत्र में हुई भारत की हालिया प्रगति और 2030 के लिए इसकी कार्यसूची व दृष्टिकोण पर चर्चा की जा सके। इस संगोष्ठी में जलवायु अनुसंधान के प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में देश के लिए एक दीर्घकालिक अनुसंधान कार्यक्रम और जलवायु अनुसंधान की सुविधा हेतु भारत सरकार के कई विभागों एवं मंत्रालयों का एक जलवायु सहायता संघ बनाने की योजना पर भी विचार-विमर्श हुआ।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार तथा विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) के सचिव डॉ. अखिलेश गुप्ता ने आईआईटी बॉम्बे में आईसीडीपी (इंटरनेशनल सेंटर फॉर डेवलपमेंट एंड परफॉर्मेंस) सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की 10वीं वर्षगांठ के ऐतिहासिक समारोह का उल्लेख करते हुए इस दिन के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा उत्कृष्टता के पहले केंद्र के रूप में साल 2012 में स्थापित इस केंद्र ने व्यापक जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम का मार्ग प्रशस्त किया है।
डॉ. गुप्ता ने इस संदर्भ में पिछले कुछ सालों के दौरान हुई प्रगति का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आज न केवल 12 उत्कृष्टता केंद्र हैं बल्कि जलवायु परिवर्तन अनुसंधान को समर्पित 20 प्रमुख कार्यक्रम भी संचालित हैं। इस व्यापक नेटवर्क में आश्चर्यजनक परिणाम देने वाले 1,400 संस्थान शामिल हैं, जहां हाल ही में निजी संस्थानों के विस्तार के साथ जलवायु परिवर्तन से संबंधित अध्ययन एवं अनुसंधान होते हैं।
डॉ. गुप्ता ने स्पष्ट किया कि यह बैठक बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका उद्देश्य राष्ट्रीय जलवायु अनुसंधान कार्यक्रम का अनावरण करना है, जो जलवायु परिवर्तन को समझने और इसकी समस्याओं को हल करने की दिशा में राष्ट्रीय प्रयासों के मार्गदर्शन व समन्वय में एक महत्वपूर्ण कदम है।
डॉ. गुप्ता ने कहा, यह पहले से ही स्पष्ट हो चुका है कि भारत जलवायु अनुसंधान में महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा है और इस वैश्विक चुनौती से निपटने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को लगातार प्रदर्शित कर रहा है। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय जलवायु अनुसंधान बैठक सहयोग व ज्ञान साझा करने और भविष्य के अनुसंधान प्रयासों के लिए एक मंच के रूप में काम करती है। डॉ. गुप्ता ने कहा कि हम सभी एक अधिक टिकाऊ और लचीले भविष्य की तलाश में हैं।