वैज्ञानिकों ने भारतीय अंटार्कटिक स्टेशन ‘मैत्री’ में ऐसी विद्युतचुम्बकीय (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक) आयन साइक्लोट्रॉन (ईएमआईसी) तरंगों की पहचान की है, जो प्लाज्मा तरंगों का ही एक रूप है। वैज्ञानिकों ने इनकी विशेषताओं का अध्ययन भी किया है। ये तरंगें ऐसे किलर इलेक्ट्रॉनों की वर्षा/अवक्षेपण (प्रेसीपिटेशन) में अहम भूमिका निभाती हैं, जो अंतरिक्ष-जनित हमारी प्रौद्योगिकी/उपकरणों के लिए हानिकारक हैं। आपको बता दें कि इलेक्ट्रॉनों की गति प्रकाश की गति के करीब होती हैं, जो पृथ्वी ग्रह की विकिरण पट्टी का निर्माण करती हैं। यह अध्ययन नीचे की कक्षाओं में स्थापित किए गए उपग्रहों पर विकिरण पट्टी (रेडिएशन बेल्ट) में ऊर्जा से भरपूर कणों के प्रभाव को समझने में सहायक बन सकता है।
विज़िबल ब्रह्मांड में व्याप्त 99 प्रतिशत से ज्यादा पदार्थों में प्लाज्मा होता है। हमारा सूर्य, सौर हवा, अंतरग्रहीय माध्यम, पृथ्वी के निकट क्षेत्र, चुम्बकीय क्षेत्र [मैग्नेटोस्फीयर- वह गुहा (कैविटी) जिसमें पृथ्वी स्थित है और सूर्य के प्रकोप से सुरक्षित रहती है), और हमारे वायुमंडल के ऊपरी हिस्से में पदार्थ की चौथी अवस्था – प्लाज्मा शामिल है। प्लाज्मा तरंगों का अध्ययन हमें उन क्षेत्रों के बारे में जानकारी प्रदान करता है जो हमारे लिए दुर्गम होने के साथ ही अलग-अलग क्षेत्रों में द्रव्यमान और ऊर्जा का परिवहन करते हैं। वे आवेशित कणों के साथ किस तरह परस्पर संपर्क करते हुए पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र ( मैग्नेटोस्फीयर) की समग्र गतिशीलता को नियंत्रित करते हैं।
ऐसी ही एक तरंग ऐसी विद्युतचुम्बकीय (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक) आयन साइक्लोट्रॉन (ईएमआईसी) है जो पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर में देखी गई प्लाज़्मा तरंगों को पार करती है। वे 500 केईवी से लेकर सैकड़ों एमईवी तक विस्तृत ऊर्जा प्रसार क्षेत्र (रेंज) वाले इलेक्ट्रॉनों के साथ प्रतिध्वनित हो सकते हैं और उन्हें उच्च- अक्षांश (हाई लैटिट्यूड) वातावरण में अवक्षेपित (प्रेसीपिटेट) कर सकते हैं।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान,- भारतीय भूचुम्बकत्व संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ जियोमैग्नेटिज्म – आईआईजी) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने भारतीय अंटार्कटिक स्टेशन मैत्री में स्थापित इंडक्शन कॉइल मैग्नेटोमीटर डेटा द्वारा 2011 और 2017 के बीच एकत्र किए गए आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिससे कि ईएमआईसी तरंगों के जमीनी अवलोकन के कई पहलुओं को सामने लाया जा सके। उन्होंने अंतरिक्ष में तरंगों की उत्पत्ति के स्थान की पहचान करने के बाद यह भी प्रतिपादित किया कि निम्न-आवृत्ति तरंगें क्रमशः उच्च-आवृत्ति तरंगों को संशोधित करती हैं।
जर्नल जेजीआर स्पेस फिजिक्स में प्रकाशित भू केंद्र (ग्राउंड स्टेशन) मैत्री पर ईएमआईसी तरंगों के मॉड्यूलेशन के सांख्यिकीय परिदृश्य को प्रस्तुत करने के लिए बड़े डेटा का उपयोग करके मॉड्यूलेशन विशेषताओं की जांच करने का यह पहला प्रयास दिखाता है कि इस तरह की तरंग घटनाओं का लघु-अवधि उतार – चढ़ाव (मॉड्यूलेशन) सामान्य बात है और ईएमआईसी तरंग आवृत्ति (वेव फ्रीक्वेंसी) पर निर्भर होता है। इसके अलावा विद्युतचुम्बकीय (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक) आयन साइक्लोट्रॉन (ईएमआईसी) तरंग की चरम आवृत्ति में वृद्धि के साथ छोटी अवधि घट जाती है और तीव्र ईएमआईसी तरंग घटनाओं की उच्च शिखर आवृत्ति होने की संभावना बन जाती है। इस तरह का अध्ययन ईएमआईसी तरंग मॉडुलेशन के बारे में हमारी समझ को बेहतर करने तथा उपग्रहों और उनके संचार को प्रभावित करने वाले ऊर्जावान कणों के साथ उनके संभावित परस्पर व्यवहार को जानने के लिए अहम है।