fbpx
Innovation

अब पानी से चलेगा हीटिंग सिस्टम, दुर्गम इलाकों में खाना गर्म करने में आएगा काम

Featured Video Play Icon

न्यूज इन साइंस ब्यूरो।

आईआईटी दिल्ली ने हीटिंग सोल्यूशन के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। संस्थान ने हीटिंग सिस्टम को ऐक्टिवेट करने में आने वाली पेरशानी को एक नई टेक्नोलॉजी से दूर किया है। इस सिस्टम को महज पानी से कहीं भी और किसी भी समय ऐक्टिवेट किया जा सकता है। इसके लिए ईंधन या बिजली की जरूरत नहीं होती है।

दरअसल, भारत के पूर्वोत्तर जैसे दुर्गम इलाकों में बिजली की आंख-मिचौली आम बात है। वहां हीटिंग सोर्स नहीं होने से लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

आईआईटी दिल्ली के डिजाइन डिपार्टमेंट में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सुमेर सिंह ने अपनी रिसर्च टीम के साथ ये कामयाबी हासिल की है। यह तकनीक रासायनिक ऊर्जा पर काम करती है। इसे ‘पावरलेस हीटिंग सिस्टम’ कहा जाता है।


ऐसा पैदा होती है हीट

ऐक्टिव हीटिंग में ईको-फ्रेंडली मिनरल और नमक जैसे तत्वों का मिश्रण होता है। इससे एक्सोथर्मिक ऊर्जा पैदा होती है। पानी के संपर्क में आने से इससे हीट पैदा होती है। इससे खाने-पीने की किसी चीज के तापमान को 60 से 70 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ाने जितनी ऊर्जा पैदा होती है। वहीं हीटर का वजन महज 50 ग्राम है। हर हीटिंग के बाद हीटिंग पैड के अंदर वाले बायो-प्रोडक्ट (पत्थर जैसे प्राकृतिक खनिज पदार्थ) को फेंका जा सकता है। खास बात यह है कि पत्थर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है और सौ फीसदी बायो-डिग्रेडेबल है।

इस तकनीक के कई फायदे

इस तकनीक को काम में लेने वाले इससे इंस्टेट नूडल्स बना सकते हैं। रेडी टू ईट खाद्य पदार्थों को हीट कर सकते हैं। साथ ही चाय, कॉफी जैसी चीजें भी इससे गर्म कर सकते है। यह प्रोडक्ट पूर्वोत्तर में तैनात फौजी भाइयों, पर्यटकों और ऑफिस जाने वालों के भी बड़ी काम की चीज है। साथ ही हीटिंग के लिए लकड़ियों को जलाने की जरूरत भी खत्म हो जाती है। कई कंपनियों ने इसे बाजार में उतारने में रूचि दिखाई है।

खाना गर्म रखने वाला डिब्बा

डॉ सिंह और उनके साथियों ने एक फूड बॉक्स और लिक्विड कंटेनर भी विकसित किया है। इसे बिना बिजली वाले हीटिंग सिस्टम के साथ जोड़ा जा सकता है। उन्होंने इसका इस्तेमाल कंटेनर विकसित करने के लिए किया जो मांग के आधार पर खाने-पीने की चीज को गर्म कर सकते हैं। भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत स्वायत्त संस्था नॉर्थ-ईस्ट सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी ऐप्लीकेशन एंड रीच (NECTAR) ने इस काम में डॉ सिंह और उनकी रिसर्च टीम की मदद की है।

Leave a Comment

Your email address will not be published.

You may also like