सुनने में अटपटा लगेगा लेकिन यह सच है कि सिर्फ मनुष्य ही मोटे नहीं होते। वैसे तो मोटापे की समस्या हम मनुष्यों के लिए तो अब आम बात हो गई है। कई बार तो हमें सबसे मोटा प्राइमेट भी कहा जाता है और इसके लिए लंबे समय से वैज्ञानिक या तो हमारे उन जीन्स को दोष देते आए हैं जो हमें अधिक वसा संग्रहित करने में मदद करते हैं, या फिर हमारे मीठे और तले-भुने खाने की आदत को।
लेकिन यदि आप कांगो गणराज्य जाएंगे तो पाएंगे कि वहां चिम्पैंज़ी इतने मोटे होते हैं कि उन्हें पेड़ों पर चढ़ने में परेशानी होती है, या वर्वेट बंदर इतने मोटे मिलेंगे कि एक शाखा से दूसरी शाखा पर छलांग लगाते हुए वे हाफंने लगेंगे।
और अब गैर-मानव प्राइमेट्स की 40 प्रजातियों (छोटे माउस लीमर्स से लेकर हल्किंग गोरिल्ला तक) पर हुए एक नए अध्ययन में पाया गया है कि अतिरिक्त भोजन मिलने पर इन प्रजातियां में भी उतनी ही आसानी से वज़न बढ़ जाता है जितनी आसानी से हम मनुष्य मोटे हो जाते हैं।
कुछ वैज्ञानिकों का मानना था कि हमारी प्रजाति (होमो सैपिएन्स) ही मोटापे से ग्रसित है क्योंकि हमारे पूर्वज कैलोरी का भंडारण बहुत दक्षता से करने के लिए विकसित हुए थे। इस विशेषता से हमारे प्राचीन खेतिहर सम्बंधियों को अक्सर पड़ने वाले अकाल के समय इस संग्रहित वसा से मदद मिलती होगी। कहा यह गया कि इसी चीज़ ने हमें बाकी प्राइमेट्स से अलग किया।
लेकिन देखा जाए तो अन्य प्राइमेट भी मोटाते हैं। कांजी नामक बोनोबो वानर शोध-अनुसंधानों के दौरान केले, मूंगफली और अन्य व्यंजनों से पुरस्कृत होकर अपनी प्रजाति के औसत से तीन गुना अधिक वज़नी हो गया था। इसी प्रकार से, बैंकॉक की सड़कों पर अंकल फैटी नामक मकाक वानर भी इसी का उदाहरण है जो पर्यटकों द्वारा दिए गए मिल्कशेक, नूडल्स और अन्य जंक फूड खा-खाकर मोटा हो गया था; वज़न औसत से तीन गुना अधिक (15 किलोग्राम) था।
ये वानर अपवादस्वरूप मोटे हुए थे या इनमें भी मोटे होने की कुदरती संभावना होती है, यह जानने के लिए ड्यूक युनिवर्सिटी के जैविक नृविज्ञानी हरमन पोंटज़र ने चिड़ियाघरों, अनुसंधान केंद्रों और प्राकृतिक हालात में रहने वाले गैर-मानव प्राइमेट्स की 40 प्रजातियों के कुल 3500 जानवरों का प्रकाशित वज़न देखा और उसका विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि बंदी अवस्था (चिड़ियाघर वगैरह) में रखे गए कई जानवरों के वज़न औसत से अधिक थे। बंदी अवस्था में 13 प्रजातियों की मादा और छह प्रजातियों के नर जानवरों का वज़न प्राकृतिक की तुलना में औसतन 50 प्रतिशत अधिक था।
इसके बाद शोधकर्ताओं ने पश्चिमी आहार पाने वाले लगभग 4400 अमेरिकी वयस्कों (मनुष्यों)का वज़न देखा। तुलना के लिए नौ ऐसे समुदाय के वयस्कों का वज़न देखा जो भोजन संग्रह और शिकार करते हैं, या अपना भोजन खुद उगाते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि कद को ध्यान में रखें तो अमेरिकी लोग इन समुदाय के लोगों से 50 प्रतिशत अधिक वज़नी हैं।
फिलॉसॉफिकल ट्रांज़ेक्शन ऑफ रॉयल सोसायटी बी में प्रकाशित नतीजे बताते हैं कि हालांकि जेनेटिक कारणों से कुछ व्यक्तियों में मोटापे का खतरा बढ़ सकता है, लेकिन हमारा बज़न बढ़ना बाकी प्राइमेट्स से भिन्न नहीं है। पोंटज़र कहते हैं कि वज़न बढ़ने के पीछे कार्बोहाइड्रेट्स या किसी विशेष भोजन को दोष न दें। जंगली प्राइमेट अपने बंदी साथियों की तुलना में कहीं अधिक कार्बोहाइड्रेट खाते हैं, जबकि बंदी जानवर अधिक कैलोरी-अधिक प्रोटीन वाला भोजन खाते हैं। दोनों समूहों के दैनिक व्यायाम सम्बंधी गतिविधियों में अंतर के बावजूद दोनों समूह के जानवर प्रतिदिन समान मात्रा में कैलोरी खर्च करते हैं। इसलिए ऐसी बात नहीं है कि बंदी जानवर इसलिए मोटे हैं कि वे बस आराम से पड़े रहते हैं और खाते रहते हैं।
अध्ययन सुझाता है कि बंदी प्राइमेट मानव मोटापे को समझने के लिए अच्छे मॉडल हो सकते हैं, इनसे मोटापे के इलाज के नए तरीके खोजने में मदद मिल सकती है।(स्रोत फीचर्स)