लगभग 14,300 साल पहले फ्रांस स्थित चीड़ के जंगल में एक असाधारण घटना घटी थी जिसके निशान हाल ही में उजागर हुए हैं। ‘मियाके इवेंट’ नामक इस घटना में सौर कणों की इतनी शक्तिशाली बमबारी हुई थी कि ऐसी घटना यदि आज हुई होती तो इससे संचार उपग्रह तो नष्ट होते ही, साथ में दुनिया भर की बिजली ग्रिड को भी गंभीर नुकसान हुआ होता। यह दिलचस्प जानकारी पेरिस स्थित कॉलेज डी फ्रांस के जलवायु विज्ञानी एडुआर्ड बार्ड के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन से मिली है। उन्होंने फ्रांस के आल्प्स जंगलों में नदी के किनारे दबे पेड़ों के वलयों की जांच करके यह जानकारी दी है।
ऐसा माना जाता है कि मियाके घटनाएं सूर्य द्वारा उत्सर्जित उच्च-ऊर्जा प्रोटॉन्स के परिणामस्वरूप होती हैं। क्योंकि आधुनिक समय में अभी तक ऐसी कोई भी घटना नहीं देखी गई है इसलिए वैज्ञानिक इस रहस्य को जानने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि सूरज से ऊर्जावान कणों के बौछार की घटनाएं देखी गई हैं लेकिन मियाके घटना अब तक ज्ञात दस सबसे बड़ी घटनाओं में से एक है। इसका ऊर्जा स्तर 1859 की सौर चुंबकीय कैरिंगटन घटना से भी अधिक था।
गौरतलब है कि सूरज से ऊर्जित कणों से सम्बंधित घटनाओं के सबूत पेड़ की वलयों और बर्फ के केंद्रीय भाग में दर्ज हो जाते हैं, जिसमें आवेशित सौर कण वायुमंडल के अणुओं से संपर्क में आने पर कार्बन के रेडियोधर्मी समस्थानिक, कार्बन-14 में वृद्धि करते हैं। कार्बन-14 समय के साथ क्षय होता रहता है और इसके क्षय की स्थिर दर इसे कार्बनिक पदार्थों की डेटिंग के लिए उपयोगी बनाती है। पेड़ की वलयों में कार्बन-14 की बढ़ी हुई मात्रा मियाके घटना की ओर इशारा करती है।
विशेषज्ञों के अनुसार आखिरी ग्लेशियल मैक्सिमम के अंत में बर्फ की चादरों के पिघलने से नदियों का बहाव तेज़ हो गया। बहाव के साथ आने वाली तलछट के नीचे ऑक्सीजन विहीन पर्यावरण में पेड़ों के तने संरक्षित रहे। ये पेड़ आज भी सीधे खड़े हैं। 172 पेड़ों से लिए गए कार्बन-14 नमूनों का अध्ययन करने पर 14,300 साल पहले कार्बन-14 की अतिरिक्त मात्रा का पता चला।
समय की सही गणना के लिए शोधकर्ताओं ने सौर गतिविधि के एक अन्य संकेतक – बर्फीली कोर में बेरीलियम-10 – अध्ययन किया और पाया कि कार्बन-14 और बेरीलियम-10 दोनों में वृद्धि एक ही समय दर्ज हुई हैं, जो अभूतपूर्व सौर गतिविधि का संकेत है।
फिलॉसॉफिकल ट्रांज़ेक्शन्स ऑफ रॉयल सोसायटी-ए में प्रकाशित यह खोज इसलिए दिलचस्प मानी जा रही है कि यह घटना अपेक्षाकृत शांत सौर हलचल के दौरान हुई। अनुमान है कि सूर्य की सतह के नीचे चुंबकीय क्षेत्र बनकर सौर तूफान के रूप में फूट गया होगा। (स्रोत फीचर्स)
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