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फैबरिक किताबें बनी बच्चों की पसंद

भारत की भाषाई विविधता से सजे नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में बच्चों और युवाओं के बहुत कुछ खास है। 18 फरवरी तक चलने वाले यह पुस्तक मेला सभी को आकर्षित कर रहा है। यहाँ अनेक नवाचार देखे जा रहे हैं। ऐसा ही एक नवाचार है वॉशेबल फैबरिक पुस्तकों का।
एफ—17 हॉल 4 में स्काई कल्चर द्वारा तैयार की गई बच्चों की वॉशेबल फैबरिक पुस्तकें हैं, जो 6 महीने के बच्चों के लिए विशेष रूप से तैयार की गई हैं। इन पुस्तकों की खासियत है कि ये वॉशेबल कपड़े पर तैयार की गई हैं ताकि बिना फटे, खराब हुए लंबे समय तक ये नन्हे—नन्हे बच्चों के पास रहे और उनमें चित्रों के माध्यम से तरह—तरह चीजों को समझने और पढ़ने की आदत विकसित की जा सके। ये फैबरिक किताबें हिंदी, कन्नड़, मलयालम, असमिया, कश्मीरी भाषाओं में भारतीय सभ्यता और संस्कृति को दर्शाती हैं।
साइबर अपराध से कैसे बचे बच्चे और युवा
विश्व पुस्तक मेले में आयोजित “हिडन फाइल्स-डिकोडिंग साइबर क्रिमिनल्स एंड फ्यूचर क्राइम्स” एक दिलचस्प सत्र में भारत के प्रसिद्ध साइबर क्राइम एक्सपर्ट अमित दुबे ने आरजे स्वाति के साथ अपने अनुभवों को साझा किया। उन्होंने साइबर अपराध से सावधान रहने के टिप्स देते हुए कहा, ”अपराधी यूजर्स का मोबाइल फोन हैक नहीं करते, बल्कि उनका दिमाग हैक करते हैं। अधिकतर बच्चे और युवा इसका शिकार होते हैं। इससे बचने के लिए बच्चों और युवाओं को साइबर क्राइम की किताबें पढ़नी चाहिए। मैंने अब तक करीबन दो लाख पुलिसवालों को प्रशिक्षित किया है, लेकिन आम लोगों के लिए साइबर अपराध के प्रति सचेत करने के लिए कहानियाँ ही सबसे अच्छा माध्यम हैं।”
रविवार को ‘द लल्लनटॉप’ से मशहूर हुए सौरभ द्विवेदी के एक कार्यक्रम में भी लोगों को अपनी आकर्षित किया। उन्होंने अपनी साहित्यिक यात्रा पर बात करते हुए बताया कि किस प्रकार लाइब्रेरी ने किताबों के प्रति उनके प्यार को जगाया और उनके प्रतिष्ठित शो को प्रेरित किया। उन्होंने युवाओं से कहा कि भाषा ऐसी होनी चाहिए कि बात दिल को छू जाए।
रोजमर्रा की जिंदगी में किस तरह की खबरों पर ध्यान केंद्रित हो, किसी खबर को कैसे देखा जाए और उसमें भावनात्मक मूल्य को डाला जाए, इन सब विषयों पर बात करते हुए उन्होंने कोविड के दौरान की कवरेज में अपने अनुभवों को साझा किया और कहा कि एक पत्रकार के लिए पढ़ना सांस लेने जितना महत्वपूर्ण है। यदि किताबें नहीं पढ़ेंगे, तो लोगों को पढ़ना असंभव है। समय पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह लोगों के लिए उतना ही है जितना कि मेरे लिए, लेकिन हमें समय प्रबंधन की बेहतर समझ विकसित करनी होगी।
थीम मंडप पर बहुत कुछ
बहुभाषी भारत की विविधता को दर्शाता थीम मंडप लोगों के आकर्षण का विशेष केंद्र बना। यहाँ डिजिटल और मुद्रित दोनों रूपों में भारत की भाषाई संस्कृति को परिलक्षित किया गया है। यहाँ उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम हर भाषा का रंग है। यहाँ एक एलईडी स्क्रीन लगाई गई है, जिस पर पाठक की-बोर्ड से अपना नाम टाइप कर उसका विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद प्राप्त कर सकते हैं। एक वॉल पर साइन बोर्ड हैं, जो रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, मेट्रो, सड़कों पर लगे पथ—प्रदर्शकों, अयोध्या नगर निगम को अलग—अलग भाषाओं में प्रदर्शित किया गया है।
यहाँ भारत की प्रारंभिक बहुभाषी परंपरा की भी एक वॉल है, जिस पर जूनागढ़, महरौली लौह स्तंभ, बांकुरा की चंद्र वर्मन, बादामी गुफाएँ, चंद्रगिरि, शोलिंगुर मंदिर और येल्लम्मा मंदिर में मिले प्राचीन शिलालेखों के चित्र अंकित हैं जो दर्शा रहे हैं कि भाषाई विविधता की यह परंपरा भारत में सदियों से है। यहीं एक तरफ हिंदी और अंग्रेजी सहित भारत की अन्य भाषाओं में प्रकाशित समाचार पत्रों को दर्शाती एक वॉल है। बच्चों के लिए एक वॉल पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रेरक प्रसंगों को 15 भाषाओं में दर्शाया गया है। यहाँ नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया द्वारा प्रकाशित ‘सब का साथी, सब का दोस्त’ पुस्तक पढ़ने के लिए उपलब्ध है। संस्कृत, कश्मीरी, तमिल, उर्दू, बांग्ला आदि के साहित्य के जरिये भाषाओं के विकास में किस तरह योगदान मिला, पुस्तक—प्रेमी इस विकास—यात्रा का दर्शन भी थीम मंडप कर रहे हैं।
भाषाओं के संरक्षण से देश की प्रगति
नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले के दूसरे दिन थीम मंडप में आॅर्थर गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित सत्र में बहुभाषी भारतीय संस्कृति पर विचार रखते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विजय शंकर मिश्रा ने राष्ट्रवादी आंदोलन में सभी भाषाओं के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने भाषा के कलात्मक अभिव्यक्ति के विभिन्न गैर-मौखिक रूपों जैसे लोककथाओं और लोकशिल्प कलाओं पर पड़ने वाले प्रभावों पर भी विचार रखते हुए कहा कि भाषा और संस्कृति का संरक्षण किसी भी राष्ट्र और उसके लोगों की प्रगति का प्रमुख तत्व है। चर्चा में शामिल डॉ. अशोक कुमार ज्योति, सहायक प्रोफेसर, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा, ”विभिन्न भाषाओं में साहित्य को संरक्षित करने के लिए हमें मौखिक और लिखित दोनों परंपराओं को संरक्षित करने की आवश्यकता है। हमारे देश में अभी भी 670 भाषाएँ और बोलियाँ हैं जिनके माध्यम से हमने अपनी संस्कृति, भाषाओं, साहित्य को जोड़कर रखा है, उदाहरण के तौर पर, रामायण का 300 भाषाओं में अनुवाद किया गया है।” थीम मंडप में ही बहुभाषी कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें हिंदी के प्रसिद्ध कवि डॉ. दिविक रमेश, संस्कृत कवि आचार्य राम दत्त मिश्रा अनमोल, ओडिया कवि अनिता पांडे और असमिया कवि निर्देश निधि दीपिका दास ने अपनी—अपनी भाषाओं में काव्य—पाठ किया।

लेखकों—साहित्यकारों की दुनिया का अनोखा अनुभव
लेखक मंच पर हर दिन बड़े—बड़े लेखकों, साहित्यकारों का जमावड़ा लग रहा है। खास बात यह है कि इस बार हिंदी और अंग्रेजी के साथ—साथ उर्दू, पंजाबी, कन्नड़, असमिया, मलयालम, गुजराती सभी भाषाओं का साहित्यिक संगम इस मंच पर मिल रहा है। रविवार को प्रमोद कुमार अग्रवाल की 75वीं किताब ‘माफिया’ का विमोचन हुआ। प्रयागराज शहर के इतिहास और विरासत पर आधारित यह पुस्तक लेखक के पुलिस सेवा में रहते हुए अपने अनुभवों पर आधारित है जो लोगों को समाज में अशांति फैलाने वाले गैरसामाजिक तत्वों के खिलाफ खड़े होने को प्रेरित करती है।
लेखक मंच पर ही साहित्य अकादमी के तत्वाधान में बहुभाषी युवा लेखक सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें उपस्थित लेखकों ने बहुभाषी भारत : एक जीवंत परंपरा के तहत देश की अलग—अलग भाषाओं में अपनी कविताओं और कहानियों का पाठ करके श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। असमिया भाषा में मिताली फूकन ने “कैंसर” नामक कविता सुनाई। हिंदी के कवि विवेक मिश्र ने दिल्ली दंगों पर कही कविता में समाज का आइना सामने रखा और “बेटियां फूल लगती हैं” नाम से एक कविता का पाठ किया जिसमें लड़की होना कितना मुश्किल है इस पर बात की। पंजाबी कहानीकार बलविंदर एस. बरार ने मंच से पंजाबी में “जस्ट फ्रेंड” कहानी पढ़ी जो प्यार के यथार्थ पर आधारित है। बिहार की पहचान मैथिली भाषा में रमन कुमार सिंह ने अपनी बात रखी। अंत में उर्दू के गज़लकार सालिम सलीम ने अपने अंदाज में श्रोताओं को उत्साहित किया। उनकी शायरी जीवन के अकेलेपन को उजागर करके सामने रखती है।

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