भारतीय विज्ञान कांग्रेस की 108वां सत्र आज से नागपुर में शुरू हो गया है। पांच दिन तक चलने वाले इस सम्मेलन में विज्ञान और तकनीक से जुड़े कई मसलों पर सार्थक और गंभीर चर्चा हो रही है। कई पेपर भी पेश किए जाएंगे। भारतीय विज्ञान कांग्रेस के शुरुआत का इतिहास भी उतना ही रोचक है। आइए जानते हैं इसका इतिहास
ब्रिटिश रसायन विज्ञानियों को शुरुआत का श्रेय
भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन (ISCA) की शुरुआत दो ब्रिटिश रसायन विज्ञानियों प्रोफेसर जेएल सिमोंसेन और प्रोफेसर पीएस मैकमोहन की दूरदर्शिता और पहल के चलते हुई। उन्होंने सोचा कि अगर ब्रिटिश एसोसिएशन फॉर द एडवांसमेंट ऑफ साइंस की तर्ज पर कुछ हद तक शोध करने वालों की एक सालाना बैठक आयोजित की जा सके, तो भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा मिल सकता है।
1914 में पहली बैठक
विज्ञान कांग्रेस की पहली बैठक 15-17 जनवरी, 1914 को एशियाटिक सोसाइटी, कलकत्ता (अब कोलकाता) के परिसर में हुई। इसकी अध्यक्षता कलकत्ता विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति न्यायमूर्ति सर आशुतोष मुखर्जी ने की थी। भारत और विदेशों से एक सौ पांच वैज्ञानिकों ने इसमें हिस्सा लिया। इस दौरान 35 पेपर पेश किए। इन्हें छह भागों-वनस्पति विज्ञान, रसायन विज्ञान, एंथ्रोपोलॉजी, भूविज्ञान, भौतिकी, जूलॉजी में बांटा गया था।
वैज्ञानिकों का मजबूत संगठन
ISCA अब मजबूत संगठन बन चुका है। इसके सदस्यों की संख्या साठ हजार से ज़्यादा है। पेश किए जाने वाले पेपर की संख्या बढ़कर लगभग दो हजार हो गई है। बदलते परिदृश्य और देश की जरूरतों के हिसाब से इसमें नए विषय भी जोड़े गए हैं। अब इसके भागों की संख्या 16 है।
विज्ञान कांग्रेस के 25 साल पूरे होने पर कोलकाता में ही साल 1938 में रजत सत्र आयोजित किया गया था। इसी सत्र के दौरान पहली बार भारतीय विज्ञान कांग्रेस में विदेशी वैज्ञानिकों की भागीदारी शुरू हुई थी।
वहीं स्वर्ण सत्र 1963 में दिल्ली में आयोजित किया गया था। इस दौरान दो विशेष प्रकाशन भी हुए थे। पहला भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन का संक्षिप्त इतिहास और दूसरा भारत में विज्ञान के 50 साल। इन दोनों प्रकाशनों के 12 खंड थे। हर खंड विज्ञान की एक खास शाखा को समर्पित था।
हीरक सत्र का आयोजन चंडीगढ़ में साल 1973 में हुआ था। इस दौरान भी दो विशेष प्रकाशन निकाले गए। पहला भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन का एक दशक (1963-72)। इस प्रकाशन में जनरल प्रेसीडेंट की जिंदगी के बारे में जानकारी दी गई थी। दूसरा भारत में विज्ञान का एक दशक (1963-72)।
इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन ने 1988 में अपनी स्थापना का 75वां वर्ष मनाया। इसे प्लेटिनम जुबली के नाम से भी जाना जाता है। इसे ध्यान में रखते हुए, “इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन-ग्रोथ एंड एक्टिविटीज” नामक एक विशेष ब्रोशर प्रकाशित किया गया था ताकि वर्षों से एसोसिएशन के कार्यक्रमों को सामने लाया जा सके।
शताब्दी सत्र
इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन ने 2 जून, 2012 को अपनी स्थापना के सौवें वर्ष का जश्न मनाया। 2013 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में शताब्दी सत्र कोलकाता में आयोजित किया गया था। इस अवसर पर:
भारत में वरिष्ठ वैज्ञानिकों को सम्मानित करने और प्रोत्साहित करने के लिए दस आशुतोष मुखर्जी फैलोशिप की स्थापना की गई थी।
विज्ञान, प्रौद्योगिकी और इनोवेशन नीति 2013 जारी की गई।
शताब्दी समारोह के लिए डाक विभाग द्वारा भारतीय डाक टिकट जारी किए गए।
भारत में अपने विभिन्न चैप्टर के माध्यम से शताब्दी समारोह के लिए भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन की पहलों के बारे में जानकारी देने के लिए “भारतीय विज्ञान कांग्रेस राष्ट्रव्यापी समारोह का शताब्दी सत्र” नाम की एक विशेष पुस्तक प्रकाशित की गई थी।
पंडित नेहरू की खास दिलचस्पी
भारतीय विज्ञान कांग्रेस का 34वां वार्षिक सत्र दिल्ली में 3-8 जनवरी, 1947 को भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के महासचिव के रूप में आयोजित किया गया था। पंडित नेहरू की विज्ञान कांग्रेस में व्यक्तिगत दिलचस्पी तभी से बनी रही और शायद ही कोई सत्र ऐसा रहा हो जिसमें उन्होंने भाग न लिया हो। उन्होंने देश में, विशेषकर युवा पीढ़ियों के बीच वैज्ञानिक वातावरण के विकास में अपनी निरंतर दिलचस्पी से विज्ञान कांग्रेस की गतिविधियों को अत्यधिक समृद्ध किया। वास्तव में 1947 से विज्ञान कांग्रेस में विदेशी समाजों और अकादमियों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित करने का कार्यक्रम शामिल किया गया था। यह अभी भी विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के समर्थन से जारी है।
युवा वैज्ञानिक अवार्ड
भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन ने 1981 में 68वें सत्र से युवा वैज्ञानिकों के लिए कार्यक्रम शुरू किया। यह कार्यक्रम युवा वैज्ञानिकों को अपने समकक्षों और विशेषज्ञों के साथ प्रासंगिक वैज्ञानिक समस्याओं में विचारों के आदान-प्रदान के अवसरों के साथ अपने शोध कार्य को प्रस्तुत करने में सक्षम बनाता है। ISCA यंग साइंटिस्ट अवार्ड सबसे अच्छे प्रजेंटेशन देने वाले वैज्ञानिकों को दिए जाते हैं। वर्तमान में ऐसे चौदह पुरस्कार दिए जाते हैं।