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महासागरों में 171 खरब प्लास्टिक के टुकड़े, 2040 तक तिगुना होने की उम्मीद

दुनिया के महासागरों में प्लास्टिक कचरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। एक नए अध्ययन के मुताबिक फिलहाल समुद्रों में 171 ट्रिलियन से ज्यादा प्लास्टिक के टुकड़े तैर रहे हैं। 2005 में ये आंकड़ा 16 ट्रिलियन था। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर कोई कदम नहीं उठाया गया तो ये आंकड़ा 2040 तक बढ़कर तिगुना हो जाएगा। ये अध्ययन ऐसे समय आया है जब देशों ने पिछले सप्ताह ही 30 प्रतिशत महासागरों को संरक्षित करने से जुड़ी संधि पर हस्ताक्षर किए हैं।

ऐसे निकाला गया आंकड़ा

इस नए अनुमान पर पहुंचने के लिए अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने 1979 से 2019 तक जमा डेटा का विश्लेषण किया। इसके बाद हाल ही में एकत्र किए गए डेटा को इसमें जोड़ा जो प्लास्टिक को इकट्ठा करने के लिए समुद्रों को जाल से पार हो जाते हैं। जाल में गिने गए प्लास्टिक को फिर वैश्विक अनुमान बनाने के लिए गणितीय मॉडल में जोड़ा गया। अगर इस कचरे को तौला जाए तो यह 23 लाख टन हो सकता है। ये डेटा 12000 जगहों से जमा किए गए हैं। इनमें अटलांटिक, प्रशांत, हिंद और भूमध्य सागर शामिल हैं। ये अध्ययन PLOS ONE जर्नल में छपा है।

171 ट्रिलियन टुकड़ों में हाल ही में फेंके गए प्लास्टिक और पुराने टुकड़े शामिल हैं। ये अध्ययन 5 गेरस इंस्टीट्यूट (5 Gyres Institute) ने किया है। प्लास्टिक समुद्री जानवरों और मछलियों के लिए जानलेवा है। इसे कम हानिकारक पदार्थ में बदलने में सालों लगते हैं।

बोतल, पैकेजिंग, मछली पकड़ने के उपकरण या अन्य सामान जैसे सिंगल-यूज वाले प्लास्टिक समय के साथ सूरज की रोशनी या यांत्रिक गिरावट के चलते छोटे टुकड़ों में बदल जाते हैं। व्हेल, सीबर्ड, कछुए और मछली जैसे वन्यजीव प्लास्टिक को अपना शिकार समझ बैठते हैं और भूख से मर सकते हैं क्योंकि प्लास्टिक उनके पेट में जमा हो जाता है।

प्लास्टिक पीने के पानी में भी आ जाते हैं और माइक्रोप्लास्टिक मानव फेफड़ों, नसों और प्लेसेंटा में चले जाते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि हम अभी तक इस बारे में पर्याप्त रूप से नहीं जानते हैं कि माइक्रोप्लास्टिक मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है या नहीं।

भूमध्य सागर में सबसे ज्यादा कचरा

वर्तमान में समुद्री प्लास्टिक की सबसे ज्यादा सघनता भूमध्य सागर में है। जिसमें ग्रेट पैसिफ़िक गारबेज पैच सहित कुछ बड़े तैरते हुए टुकड़े पाए गए हैं। अध्ययन में कहा गया है कि महासागरों को साफ करने और प्लास्टिक को रीसायकल करने के बजाय उत्पादन और उपयोग की जाने वाली प्लास्टिक की मात्रा को कम करने पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि इससे प्रदूषण को रोकने की संभावना कम होती है। संयुक्त राष्ट्र 2024 तक वैश्विक प्लास्टिक संधि करने पर सहमत हुआ है जो सभी देशों पर बाध्यकारी होगी। इसमें प्लास्टिक के उत्पादन से लेकर आखिर में उसे डिस्पोज करने तक फोकस किया जाएगा। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि प्लास्टिक का उत्पादन 2050 तक चार गुना बढ़ने की उम्मीद है।

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