एशिया की सबसे बड़ी अंतर्राष्ट्रीय लिक्विड मिरर टेलीस्कोप ने काम करना शुरू कर दिया है। यह चार मीटर की है। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी डॉ. जितेंद्र सिंह ने उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल ( सेवानिवृत्त ) गुरमीत सिंह की उपस्थिति में इसका उद्घाटन किया। इसे उत्तराखंड के देवस्थल में लगाया गया है।
इस मौके पर डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह मुख्य रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता ने देश की वैज्ञानिक बिरादरी को विज्ञान, प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक के बाद एक विश्व स्तर की नई पहलों और इनोवेशन को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए सक्षम और मजबूत किया है। उन्होंने कहा कि आज की यह ऐतिहासिक घटना अंतरिक्ष और खगोल विज्ञान के रहस्यों का अध्ययन करने और शेष विश्व के साथ इसे साझा करने के लिए भारत की क्षमताओं को अलग और उच्च स्तर पर ले जाएगी।
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान ( आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज- एआरईईएस ) ने घोषणा की कि विश्व स्तरीय 4-मीटर इंटरनेशनल लिक्विड मिरर टेलीस्कोप ( आईएमएलटी ) अब सुदूर एवं गहन आकाशीय अंतरिक्ष का पता लगाने के लिए तैयार है। इसने मई 2022 के दूसरे सप्ताह में अपना पहला प्रकाश प्राप्त किया। यह दूरदर्शी ( टेलीस्कोप ) भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ( डीएसटी ) के तहत स्वायत्त संस्थान, एआरईईएस उत्तराखंड ( भारत ) के नैनीताल जिले में देवस्थल स्थित वेधशाला परिसर में 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह आईएलएमटी प्रकाश को एकत्र एवं घनीभूत करके केंद्रित करने के लिए तरल पारे की एक पतली परत से बने 4 मीटर व्यास के घूमने वाले दर्पण का उपयोग करता है। उन्होंने कहा कि धात्विक पारा (मर्करी) कमरे के तापमान पर तरल रूप में होता है और साथ ही अत्यधिक परावर्तक भी होता है। इसलिए यह ऐसा दर्पण बनाने के लिए आदर्श रूप से अनुकूल है। मंत्री महोदय ने कहा कि आईएलएमटी को हर रात इसके ऊपर से गुजरने वाली आकाश की पट्टी का सर्वेक्षण करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इससे सुपरनोवा, गुरुत्वाकर्षण लेंस, अंतरिक्ष मलबे और क्षुद्रग्रहों जैसी क्षणिक या परिवर्तनीय आकाशीय वस्तुओं का पता लगाने में सहायता मिलती है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आईएलएमटी पहला ऐसा तरल दर्पण टेलीस्कोप है जिसे विशेष रूप से खगोलीय अवलोकन के लिए डिजाइन किया गया है। यह वर्तमान में देश में उपलब्ध सबसे बड़ा एपर्चर टेलीस्कोप है और यह भारत में पहला ऑप्टिकल सर्वेक्षण टेलीस्कोप भी है। हर रात आकाश की पट्टी को स्कैन करते समय यह टेलीस्कोप लगभग 10-15 गीगाबाइट डेटा उत्पन्न करेगा और जिसे आईएलएमटी द्वारा उत्पन्न डेटा, बिग डेटा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता ( आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ) /मशीन लर्निंग ( एआई/एमएल ) एल्गोरिदम के एप्लीकेशन की सुविधा देने के साथ ही आईएमएलटी के साथ देखी गई वस्तुओं को वर्गीकृत करने के लिए प्रयोग किया जाएगा।
मंत्री ने बताया कि चर और क्षणिक तारकीय स्रोतों को खोजने और पहचानने के लिए डेटा का तेजी से विश्लेषण किया जाएगा। 3.6 मीटर का डीओटी, परिष्कृत बैक-एंड उपकरणों की उपलब्धता के साथ, आसन्न आईएलएमटी के साथ सबसे नए –खोजे गए क्षणिक स्रोतों के तेजी से अनुवर्ती अवलोकन की अनुमति देगा। साथ ही आईएलएमटी से एकत्र किए गए डेटा, अगले 5 सालों के परिचालन समय में एक गहन फोटोमेट्रिक और एस्ट्रोमेट्रिक परिवर्तनशीलता सर्वेक्षण करने के लिए आदर्श रूप से अनुकूल होंगे।
किसी तरल दर्पण टेलीस्कोप में मुख्य रूप से तीन घटक होते हैं: i) एक परावर्तक तरल धातु (अनिवार्य रूप से पारा ) युक्त कटोरे जैसा एक पात्र , ii ) एक एयर बियरिंग (अथवा मोटर) जिस पर तरल दर्पण स्थापित किया गया है और iii ) एक चलन प्रणाली ( ड्राइव सिस्टम )। लिक्विड मिरर टेलिस्कोप इस तथ्य का लाभ उठाते हैं कि घूर्णन तरल की सतह स्वाभाविक रूप से एक परवलयिक (पैराबोलिक) आकार लेती है और जो प्रकाश को केंद्रित करने के लिए आदर्श है। माइलर की एक वैज्ञानिक ग्रेड पतली पारदर्शी फिल्म पारे को वायु प्रवाह से बचाती है। परावर्तित प्रकाश एक परिष्कृत बहु-लेंस ऑप्टिकल सुधारक (करेक्टर) के माध्यम से गुजरता है जो दृश्य के विस्तृत क्षेत्र में उत्कृष्ट छवियां उत्पन्न करता है। साथ ही फोकस पर दर्पण के ऊपर स्थित एक 4के⨯ 4के सीसीडी कैमरा, आकाश की 22 आर्कमिनट चौड़ी पट्टियों को रिकॉर्ड करता है।