पर्वतीय जंगल बहुत तेजी से विलुप्त होते जा रहे हैं। इससे धरती के जैविक रूप से सबसे समृद्ध इलाकों में प्रकृति के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है। अध्ययन के मुताबिक इस सदी की शुरुआत से सात फीसदी से अधिक पर्वतीय जंगल विलुप्त हो गए हैं। ये एरिया अमेरिका के टेक्सास शहर से बड़ा है। ज्यादा नुकसान उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में हुआ है जो कि प्रकृति का प्रमुख स्थान है। इससे यहां रहने वाली प्रजातियां ज्यादा खतरे में हैं।
कटाई और आग से सबसे ज्यादा नुकसान
ये स्टडी वन अर्थ जर्नल में छपी है। यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स और चीन की सदर्न यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की अगुवाई में हुआ है। अध्ययन के मुताबिक लकड़ी के लिए कटाई और आग के चलते पर्वतीय जंगलों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है।
भारत समेत दक्षिण-पूर्व एशिया पर खास फोकस
इस अध्ययन में 128 देशों को शामिल किया गया। इनमें से तीन-चौथाई देशों में पर्वतीय जंगल तेजी से घट रहे हैं। इनमें अधिकांश दक्षिण-पूर्व एशिया के देश शामिल हैं। भारत के कुछ हिस्से और दक्षिणी चीन में भी बड़ा नुकसान हुआ है।
क्या कहते हैं आंकड़े
2001 और 2009 के बीच की अवधि की तुलना में 2010 और 2018 के बीच 50% की तेजी से नुकसान हुआ है। अध्ययन के मुताबिक हम पहले की तुलना में अधिक तेजी से पर्वतीय जंगलों को खो रहे हैं। सबसे ज्यादा नुकसान एशिया, दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में हुआ। शोधकर्ताओं ने दक्षिण पूर्व एशिया के पर्वतीय इलाकों में खेती के विस्तार को कम होते जंगलों की एक प्रमुख वजह माना है। इस दौरान संरक्षित वनों का प्रदर्शन बेहतर रहा। लेकिन शोधकर्ताओं ने कहा है कि प्रजातियों को प्राकृतिक रूप से घूमने देने के लिए पर्याप्त बड़े क्षेत्रों में पेड़ों को संरक्षित किया जाए। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि पर्वतीय वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को ध्यान में रखना जरूरी है।
इसलिए अहम हैं पर्वतीय जंगल
पर्वतीय जंगल कई वजहों से प्रकृति के लिए बहुत जरूरी हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक पहाड़ी इलाकों में दुनिया के 85 फीसदी चिड़ियां, स्तनपायी और उभयचर रहते हैं। इनमें भी वनाच्छादित पर्वतीय क्षेत्र विशेष रूप से प्रकृति और वन्य जीवन के अहम आवास हैं। दुर्गम इलाकों में होने के चलते एक बार उन्हें संरक्षण मिला था। लेकिन इस सदी में तेजी से वनों की कटाई के चलते यहां पेड़ों की संख्या कम होती जा रही है। शोधकर्ताओं ने साल 2001 और 2018 के बीच दुनिया भर में पहाड़ पर पेड़ों के आच्छादन में बदलाव को ट्रैक किया। अलग-अलग ऊंचाई पर विभिन्न प्रकार के जंगलों की तुलना की, ताकि यह अध्ययन किया जा सके कि नुकसान ने प्रकृति को किस तरह प्रभावित किया है।