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स्वच्छ और सस्ती ऊर्जा के लिए ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी

 

भारत ने स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में बड़ा कदम उठाया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दे दी है। हाइड्रोजन को भविष्य में ईंधन के एक बड़े स्त्रोत के रूप में देखा जा रहा है। इस मिशन से इस ऊर्जा की लागत कम करने में मदद मिलेगी। साथ ही प्रदूषण की समस्या कम करने में भी आसानी होगी।

करीब 20 हजार करोड़ रुपए का खर्च

मिशन के लिए शुरुआती खर्च 19,744 करोड़ रुपये होगा। इसमें साइट कार्यक्रम के लिए 17,490 करोड़ रुपये रखे गए हैं। पायलट परियोजनाओं पर 1,466 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। रिसर्च और विकास के लिए 400 करोड़ रुपये और मिशन से जुड़े अन्य कामों के लिए 388 करोड़ रुपये शामिल हैं। नवीन ऊर्जा मंत्रालय संबंधित घटकों के कार्यान्वयन के लिए योजना के दिशानिर्देश तैयार करेगा।

मिशन से होंगे कई फायदे

इस मिशन से कई लाभ होने की संभावना है। देश में लगभग 125 गीगावाट की संबद्ध अक्षय ऊर्जा क्षमता वृद्धि होने की उम्मीद है। इससे हर साल कम से कम पांच मिलियन मीट्रिक टन की हरित हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता का विकास होगा। आठ लाख करोड़ रुपये से अधिक का कुल निवेश होगा। छह लाख से अधिक रोजगार के अवसर पैदा होंगे। एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा मूल्य के जीवाश्म ईंधन के आयात में कमी होगी। साथ ही सालाना ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 50 मिलियन मीट्रिक टन की कमी होगी।

इलेक्ट्रोलाइजर के निर्माण पर जोर

ग्रीन हाइड्रोजन के लिए इलेक्ट्रोलाइजर अहम होता है। मिशन में इलेक्ट्रोलाइजर के घरेलू निर्माण पर जोर है। साथ ही बड़े पैमाने पर ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में सक्षम क्षेत्रों की पहचान की जाएगी। इन्हें ग्रीन हाइड्रोजन हब के रूप में विकसित किया जाएगा।

2021 में हुई थी घोषणा

दरअसल, भारत ने 2021 में ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की थी। लंबी अवधि वाली इस रणनीति में कहा गया है कि इससे देश में इस ऊर्जा के उत्पादन में तेजी आएगी और भारत ग्रीन हाइड्रोजन का केंद्र बन जाएगा। इससे तेल रिफाइनरी, स्टील मिल और उर्वरक संयंत्र जैसे भारी उद्योगों को कार्बन मुक्त करने में ग्रीन हाइड्रोजन की विशेष भूमिका होने की उम्मीद है।

ऐसे तैयार होती है हाइड्रोजन से ऊर्जा

सिर्फ नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल करके किसी इलेक्ट्रोलाइज़र में पानी को विखंडित करके ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाता है। इस प्रक्रिया में कार्बन उत्सर्जन नहीं होता है। इसमें हाइड्रोकार्बन से बचते हुए, हाइड्रोजन को नाइट्रोजन के साथ मिलाकर ग्रीन अमोनिया तैयार किया जा सकता है। फिर ग्रीन अमोनिया का इस्तेमाल ऊर्जा को संग्रहित करने और उर्वरक बनाने के लिए किया जा सकता है। फिलहाल, दुनिया में बनने वाले ग्रीन हाइड्रोजन के बड़े हिस्से में प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल होता है। इसे ब्लैक हाइड्रोजन के रूप में जाना जाता है। कम-कार्बन तकनीकों से बना ग्रे हाइड्रोजन भी है, लेकिन वैश्विक बाजार में इसकी हिस्सेदारी बहुत कम है।

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