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जासूसी बैलून: खुफियागिरी के पारंपरिक तरीके से सैटेलाइट के जमाने में नए अवतार तक

अमेरिका ने शनिवार (चार फरवरी) को चीन के एक कथित जासूसी बैलून को कैरोलिना तट के पास मार गिराया। बुधवार को अमेरिका ने अपने क्षेत्र में इस बैलून के होने की घोषणा की थी। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन चाहते थे कि बैलून को तुरंत मार गिराया जाए। लेकिन अमेरिकी अधिकारियों का कहना था कि बैलून जब समुद्र के ऊपर हो तब इसे गिराया जाए। इससे बैलून का मलबा रिहायशी इलाकों में गिरने का खतरा नहीं रहेगा। आइए जानते हैं क्या होता है जासूसी बैलून।

आज के एडवांस युग में जासूसी के नए-नए उपकरण और टूल आ रहे हैं। ऐसे में गुब्बारे से जासूसी करना पुरानी बात लग सकती है। लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब जासूसी के लिए बैलून का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता था। इन्हें खुफिया जानकारी जमा करने का सबसे अहम तरीका माना जाता था। माना जाता है कि फ्रांस ने सबसे पहले इस तरह के बैलून का इस्तेमाल ऑस्ट्रिया और डच के खिलाफ 1794 में किया था। 1860 के दशक में भी इनका उपयोग अमेरिकी गृह युद्ध के दौरान हुआ।

लेकिन सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि जासूसी के लिए बैलून का इस्तेमाल नई क्रांति की एक झलक भर है। इस तरह के प्रोजेक्ट में चीन के साथ-साथ पश्चिम के देश भी बहुत सारा पैसा लगा रहे हैं। यहां तक कि ब्रिटेन ने भी पिछले साल जासूसी वाले बैलून के विकास के लिए लाखों पाउंड की रकम आवंटित की है।

ऐसे काम करता है जासूसी बैलून

इस तरह के बैलून वाले डिवाइस हल्के होते हैं। इनमें हीलियम जैसी गैस भरी होती है। ये सौर ऊर्जा से भी चल सकते हैं। इसमें दूर तक की चीजों को कैप्चर करने वाले जासूसी कैमरे लगे होते हैं। साथ ही रडार भी होते हैं। इन्हें जमीन से 18 हजार मीटर से 45 हजार मीटर तक की ऊंचाई तक भेजा जा सकता है। जमीन से ये दूरी फ्लाइट के रास्ते की ऊंचाई से भी ज्यादा है। इस एरिया को आम तौर पर अंतरिक्ष के नजदीक वाला इलाका माना जाता है। एक बार हवा में होने पर ये बैलून एयर करंट और प्रेशराइज्ड एयर बैलून का इस्तेमाल करके आगे बढ़ते हैं या ऊपर जाते हैं।

सैटेलाइट के जमाने में इसलिए बढ़ी अहमियत

लेकिन सवाल उठता है कि एडवांस सैटेलाइट के जमाने में बैलून इतने उपयोगी किस तरह बन गए हैं। सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि जासूसी वाले बैलून का सबसे बड़ा फायदा यह है कि ये लंबे वक्त तक सेवाएं दे सकते हैं। ये लंबे वक्त तक किसी इलाके की जानकारी जुटा सकते हैं। वहीं धरती के घूमने के तरीके के हिसाब से किसी जगह पर लगातार नजर रखने के लिए तीन से पांच सैटेलाइट की जरूरत होगी। दूसरा फायदा इनकी कीमत है। सैटेलाइट के मुकाबले ये बैलून सस्ते होते हैं। इन्हें लॉन्च करना भी बहुत आसान है।

क्या भविष्य में भी होता रहेगा इस्तेमाल

जानकारों का मानना है कि बैलून का इस्तेमाल भविष्य में भी होता रहेगा। सैटेलाइट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ने के बावजूद देश जासूसी बैलून जैसी तकनीक में निवेश कर रहे हैं। पिछले साल अगस्त में ब्रिटेन ने ऐसी ही एक घोषणा की थी। वहां के रक्षा मंत्रालय ने बताया था कि उसने अमेरिकी रक्षा कंपनी सिएरा नेवेदा के साथ 100 मिलियन पाउंड के समझौते पर सहमति दी है। इस डील के तहत ब्रिटेन निगरानी और जासूसी के लिए बैलून खरीदेगा। ये बैलून इंसान के बिना ऑपरेट होंगे।

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