केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा है कि पारंपरिक मोटे अनाज (मिलेट्स) मधुमेह, मोटापे समेत कई अन्य बीमारियों में बहुत लाभकारी है। ये अनाज जरूरी विटामिन, खनिज, प्रोटीन और फाइबर से भरपूर होते हैं। उन्होंने कहा कि चावल और गेहूं से बने सभी व्यंजनों को मोटे अनाजों से भी बनाया जा सकता है।
मोटे अनाजों को मिल रही लोकप्रियता
अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष के अवसर पर आज यहां “मिलेट्स पर सीएसआईआर इनोवेशन” नाम के एक विशेष कार्यक्रम में मुख्य भाषण देते हुए जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने योग को वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय बनाया है और अब मोटे अनाजों के लिए भी ऐसा करने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि इन अनाजों के 12 प्रकारों में से 10 भारत में उगाए जाते हैं। इनमें मिले हुए कार्बोहाइड्रेट होते हैं। इनका पाचन धीमी गति से होता है और इसलिए कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स खून में चीनी के स्तर के लिए फायदेमंद होता है।
विज्ञान राज्य मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में संयुक्त राष्ट्र ने पिछले साल भारत सरकार की पहल पर 2023 को “अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष” घोषित किया। इस पहल को 72 अन्य देशों सै समर्थन मिला।
डॉ जितेंद्र सिंह ने सीएसआईआर लैब्स की तरफ से “अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष -2023” के तहत सीएसआईआर-एनपीएल में मिलेट्स पर एक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया और “डेस्कटॉप कैलेंडर 2023” जारी किया। मंत्री ने बताया कि प्रदर्शनी में सीएसआईआर-सीएफटीआरआई और सीएसआईआर की अन्य प्रयोगशालाओं में विकसित उत्पादों और तकनीकों का प्रदर्शन किया गया। यह मोटे अनाज के अनुसंधान और विकास में सीएसआईआर-सीएफटीआरआई की क्षमताओं का प्रदर्शन करेगा।
मोटे अनाजों से बढ़ेगी किसानों की आमदनी
डॉ. जितेंद्र सिंह ने विस्तार से बताया कि सरकार की पहल भारत समेत पूरी दुनिया में मिलेट्स की खपत को फिर से प्रचलित करने जा रही है। इससे किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी। उन्होंने प्रसंस्करण के लिए प्रौद्योगिकियों और मशीनरी विकसित करने के लिए सीएसआईआर, विशेष रूप से सीएसआईआर-सीएफटीआरआई, मैसूर के प्रयासों की भी तारीफ की।
डॉ. जितेंद्र सिंह बताया कि मिलेट एक साबुत अनाज है जो पोषण से भरपूर है। यह अनाज अपने उच्च प्रोटीन स्तर और ज्यादा संतुलित अमीनो एसिड प्रोफाइल होने के चलते गेहूं और चावल से बेहतर है।
मंत्री ने कहा कि मिलेट्स सूखा-प्रतिरोधी होते हैं। इनके उत्पादन में कम पानी की जरूरत होती है और इनकी खेती खराब मिट्टी और पहाड़ी इलाकों में भी की जा सकती है। इसलिए दुनिया के लगभग सभी भौगोलिक इलाकों और क्षेत्रों में इनका उत्पादन और प्रचार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मिलेट्स कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, लोहा, मैंगनीज और जस्ता जैसे खनिजों से भी समृद्ध हैं।
सीएसआईआर-सीएफटीआरआई, मैसूरु की निदेशक डॉ. श्रीदेवी अन्नपूर्णा सिंह ने मिलेट्स प्रसंस्करण के क्षेत्र में सीएसआईआर के प्रमुख योगदानों को प्रस्तुत किया। उन्होंने इस क्षेत्र में सीएसआईआर की घटक प्रयोगशालाओं सीएफटीआरआई, मैसूरु, एनआईआईएसटी, तिरुवनंथापुरम और आईएचबीटी, पालमपुर के योगदान पर भी बल दिया।
डॉ. श्रीदेवी ने बताया कि सीएसआईआर-सीएफटीआरआई जून 2023 के दूसरे सप्ताह में “वन वीक वन लेबोरेटरी” कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है। इसमें अन्य उपलब्धियों के अलावा मिलेट्स पर विशेष जोर देने के साथ-साथ सीएफटीआरआई के योगदान को भी सामने लाया जाएगा। यह कार्यक्रम केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री, डॉ जितेंद्र सिंह के दिमाग की उपज है, जो सीएसआईआर के उपाध्यक्ष भी हैं।
इस कार्यक्रम की अन्य प्रमुख गतिविधियां विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों, औद्योगिक भागीदारों के साथ बातचीत रही। मिलेट्स नामक छोटे बीज वाली घासों के इस विविध समूह में बाजरा, ज्वार, रागी, कोदो, कुटकी, काकुन, सनवा, चीना, कुट्टू और चौलाई शामिल हैं। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने रोम, इटली में अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष- 2023 (आईवाईएम 2023) के लिए एक उद्घाटन समारोह का आयोजन किया था। उद्घाटन समारोह में कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल शामिल हुआ था।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि भारत प्रतिवर्ष 170 लाख टन से ज्यादा मिलेट्स का उत्पादन करता है। इस प्रकार से भारत का एशिया में मिलेट्स उत्पादन का हिस्सा 80 प्रतिशत और वैश्विक रूप से 20 प्रतिशत है।