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भारत 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध

प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुरूप भारत 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह बात केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्यमंत्री, डॉ. जितेंद्र सिंह 28 सितंबर को नई दिल्ली में ‘ग्रीन रिबन चैंपियंस’ कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए कही।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि “हम अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और साझेदारी द्वारा अनुसंधान एवं नवाचार के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने में योगदान देने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं।”

भारत की ऊर्जा-मिश्रण रणनीतियों में स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों में महत्वपूर्ण बदलाव, विनिर्माण क्षमता में वृद्धि, ऊर्जा उपयोग दक्षता और उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन सहित हाइड्रोजन के लिए नीतिगत प्रोत्साहन शामिल हैं।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत पंचामृत कार्य योजना के अंतर्गत अपने अल्पकालिक और दीर्घकालिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए तैयार है, जैसे 2030 तक 500 गीगावॉट की गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता को प्राप्त करना; 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का कम से कम आधा हिस्सा प्राप्त करना; 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को एक बिलियन टन तक कम करना; 2030 तक कार्बन तीव्रता को 45 प्रतिशत से कम करना; और अंततः में 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करना।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत के लिए पांच-आयामी लक्ष्य और 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन की अपनी प्रतिबद्धता के अलावा, प्रधानमंत्री श्री मोदी ने एक सतत जीवन शैली का पालन करने की आवश्यकता पर भी बल दिया था और वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा बिरादरी द्वारा अपनाए जा रहे साहसिक कदमों के माध्यम से ‘लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट’ (लाइफ) को एक वैश्विक मिशन बनाने के विचार पर बल दिया था।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत सरकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से स्वच्छ ऊर्जा नवाचारों के लिए वित्तपोषण सुनिश्चित कर रही है, जैसा कि मिशन नवाचार 2.0 के अंतर्गत परिकल्पित किया गया है। उन्होंने कहा कि स्वच्छ ऊर्जा मंत्रिस्तरीय (सीईएम) संरचना भारत को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा विकास में अपने योगदान का प्रदर्शन करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करती है और उन्होंने कुछ प्रमुख सीईएम पहलों का उल्लेख किया, जिसमें सीईएम का ग्लोबल लाइटिंग चैलेंज (जीएलसी) अभियान, स्ट्रीट लाइटिंग राष्ट्रीय कार्यक्रम, सभी के लिए किफायती एलईडी द्वारा उन्नत ज्योति (उजाला) कार्यक्रम और ‘वन सन-वन वर्ल्ड-वन ग्रिड’ पहल शामिल है, जिसकी शुरुआत पहली बार प्रधानमंत्री श्री मोदी ने सौर ऊर्जा की जबरदस्त क्षमता का दोहन करने के लिए किया था।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत जलवायु परिवर्तन की वैश्विक चुनौती से निपटने में सबसे आगे है और वर्ष 2005 के स्तरों की तुलना में 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता को 33-35 प्रतिशत तक कम करने के महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) देने के लिए प्रतिबद्ध है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पिछले कुछ वर्ष जलवायु परिवर्तन के खिलाफ भारतीय धर्मयुद्ध के साक्षी रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने 2030 के पेरिस समझौते के लक्ष्य से बहुत पहले ही नवीकरणीय स्रोतों से 40 प्रतिशत ऊर्जा उत्पादन की अपनी प्रतिबद्धता प्राप्त कर ली है।

उन्होंने कहा “भारत की ऊर्जा-मिश्रण रणनीतियों में स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों में एक बड़ा बदलाव, विनिर्माण क्षमताओं में वृद्धि, ऊर्जा उपयोग दक्षता और उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहनों सहित हाइड्रोजन के लिए एक नीतिगत विस्तार शामिल है। इसके अलावा, 2जी इथेनॉल पायलट, उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के लिए कम्फर्ट क्लाइमेट बॉक्स, हाइड्रोजन वैली, हीटिंग और कूलिंग वर्चुअल रिपॉजिटरी जैसी उभरती प्रौद्योगिकियां विचार-विमर्श के लिए शामिल हैं।”

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत ने जैव आधारित अर्थव्यवस्था के लिए एक रोडमैप और रणनीति विकसित की है जो वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमरीकी डालर की दिशा में आगे बढ़ रही है। जैव प्रौद्योगिकी विभाग उन्नत जैव ईंधन और ‘अपशिष्ट से ऊर्जा’ प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान एवं विकास नवाचारों का समर्थन कर रहा है। भारत ने आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी उपकरणों का उपयोग करके उन्नत सतत जैव ईंधन पर काम करने वाली एक अंतर्विषयक टीम के साथ 5 जैव ऊर्जा केंद्र स्थापित किए हैं।

उन्होंने कहा कि इससे कम कार्बन वाले जैव-आधारित उत्पादों के जैव-निर्माण के लिए अवसंरचना की सुविधा प्राप्त होगी। परिवहन क्षेत्र से ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन को कम करने में चिरस्थायी जैव ईंधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत विश्व के उन चुनिंदा देशों में शामिल है, जिसने 20 वर्षों के दीर्घकालिक दृष्टिकोण (2017-18 से 2037-38 तक) के साथ कूलिंग एक्शन प्लान (सीएपी) तैयार किया है।

उन्होंने कहा कि भारत में ग्रीन हाइड्रोजन इकोसिस्‍टम के लिए एक मसौदा अनुसंधान और विकास रोडमैप जारी किया गया है। मिशन के अंतर्गत अनुसंधान और विकास के लिए रणनीतिक हाइड्रोजन नवाचार साझेदारी या शिप नामक एक पीपीपी ढांचे की सुविधा प्रदान की जाएगी।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि वर्ष 2047 तक भारत के परमाणु स्रोतों से विद्युत का लगभग 9 प्रतिशत योगदान प्राप्त होने का अनुमान है। परमाणु ऊर्जा विभाग का लक्ष्य वर्ष 2030 तक परमाणु ऊर्जा उत्पादन की 20 गीगावॉट क्षमता प्राप्त करना है जो अमेरिका और फ्रांस के बाद भारत को दुनिया में परमाणु ऊर्जा के तीसरे सबसे बड़े उत्पादक देश के रूप में स्थापित करने के लिए एक प्रमुख मील का पत्थर साबित होगा।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने मत्स्य पालन, समुद्री अनुसंधान, तटीय पर्यटन और नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में चिरस्थायी प्रथाओं का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि नीली अर्थव्यवस्था की क्षमता का उपयोग करके हम सतत और जिम्मेदार रूप से आर्थिक विकास प्राप्त करते हुए अपने महासागरों का कल्याण सुनिश्चित कर सकते हैं। हमें अपने महासागरों में प्लास्टिक और माइक्रोप्लास्टिक्स में वृद्धि के बारे में भी चिंता करना चाहिए, यह एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं जिनपर हमें ध्यान केंद्रित करना है क्योंकि यह हमारी खाद्य श्रृंखला का हिस्सा है और कई समुद्री जीव उनका उपभोग करते हैं।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि संसद द्वारा पिछले मॉनसून सत्र में पारित राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (एनआरएफ) विधेयक, 2023 से भारत के विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, अनुसंधान संस्थानों और अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं में अनुसंधान और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा और इससे भारत में स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान और मिशन नवाचार को और ज्यादा प्रोत्साहन मिलेगा। पांच वर्षों के दौरान इसमें 50,000 करोड़ रुपये की लागत आएगी। इसकी 70 प्रतिशत फंडिंग गैर-सरकारी स्रोतों से प्राप्त होगी।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने और इसमें कमी लाने के देशों की कोशिशों के बावजूद, वर्ष 2100 में वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से लगभग 2.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की उम्मीद है। मंत्री ने कहा कि यह पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्यों से कम है, जिसमें सदी के अंत तक वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक युग के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का आह्वान किया गया है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि परिशुद्ध सिंचाई, जल शोधन प्रणाली, अलवणीकरण तकनीक और अपशिष्ट जल उपचार प्रौद्योगिकियों जैसी नवीन स्वच्छ जल प्रौद्योगिकियों को और ज्यादा बढ़ावा देना है और उन्हें लागू करना है।

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