चंद्रमा और मंगल ग्रह पर स्थानीय इंसानी बस्तियां बनाने के लिए वैज्ञानिक कई तरह की कोशिशें कर रहे हैं। अब इसके लिए एक नया मटीरियल बनाया गया है। इसका इस्तेमाल मंगल ग्रह पर घर बनाने के लिए किया जा सकता है। इसे यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। खास बात यह है कि इस मटीरियल को एक्सट्रा-टेरीस्ट्रियल धूल, आलू के स्टार्च और हल्का नमक मिलाकर तैयार किया गया है। इसे ‘स्टारक्रेट’ (‘StarCrete’) नाम दिया गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह सामान्य मटीरियल से दोगुना मजबूत है।
ऐसे बनाया गया स्टारक्रेट
फिलहाल अंतरिक्ष में घर बनाना बहुत महंगा है। इस पर अमल करना भी मुश्किल है क्योंकि धरती और अंतरिक्ष की परिस्थितियां पूरी तरह अलग हैं। अंतरिक्ष में भविष्य में होने वाले निर्माण के लिए ऐसे मटीरियल की जरूरत होगी जो आसानी से उपलब्ध हो और सस्ता भी हो। स्टारक्रेट में यह संभावना नजर आ रही है। इस मटीरियल को वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह की सिमुलेटेड मिट्टी को आलू स्टार्च और नमक की एक चुटकी के साथ मिलाकर तैयार किया है। यह सामान्य कंक्रीट से दोगुना मजबूत है। और एक्सट्रा-टेरीस्टियल वातावरण में निर्माण के लिए पूरी तरह उपयुक्त है।
इससे मटीरियल से जुड़ी जानकारी ओपन इंजीनियरिंग नामक वेबसाइट में छपी है। रिसर्चरों की टीम ने बताया कि आलू के स्टार्च को मंगल ग्रह की सिमुलेटेड धूल के साथ मिलाया गया। इस प्रक्रिया में आलू के स्टार्च ने सीमेंट की तरह घूल को आपसे में बांधने का काम किया। जब परीक्षण किया गया, तो स्टारक्रेट की कंप्रेसिव स्ट्रेंथ 72 मेगापास्कल (एमपीए) थी। यह सामान्य कंक्रीट में देखे जाने वाले 32 एमपीए से दोगुनी ताकत थी। चांद की धूल से बनी स्टारक्रीट 91 एमपीए से भी ज्यादा मजबूत थी।
यह काम उसी टीम के पिछले काम में सुधार करता है जहां उन्होंने बाइंडिंग एजेंट के रूप में अंतरिक्ष यात्रियों के खून और मूत्र का इस्तेमाल किया था। जबकि परिणामी मटीरियल में लगभग 40 एमपीए की कंप्रेसिव स्ट्रेंथ थी। यह सामान्य कंक्रीट से बेहतर है। इस प्रक्रिया में नियमित आधार पर रक्त की आवश्यकता वाली खामी थी। अंतरिक्ष जैसे वातावरण में काम करते समय, इस विकल्प को आलू स्टार्च का उपयोग करने की तुलना में कम संभव माना गया।
चूंकि हम अंतरिक्ष यात्रियों के लिए भोजन के रूप में स्टार्च का उत्पादन करेंगे, इसलिए इसे मानव रक्त के बजाय बाइंडिंग एजेंट के रूप में देखना समझ में आता है। इसके अलावा, वर्तमान निर्माण प्रौद्योगिकियों को अभी भी कई सालों तक और बेहतर करने की आवश्यकता है और इसके लिए काफी ऊर्जा और अतिरिक्त भारी प्रसंस्करण उपकरण की आवश्यकता होती है जो सभी किसी मिशन की लागत बढ़ाते हैं और इसे जटिल बनाते हैं। स्टारक्रेट में ये सब चीजें नहीं हैं। इसलिए यह मिशन को सरल बनाता है और इसे सस्ता और ज्यादा उपयोगी बनाता है। यूनिवर्स्टी ऑफ मैनचेस्टर में फ्यूचर ऑफ बायोमैन्युफेक्चरिंग रिसर्च हब के फेलो और इस प्रोजेक्ट के लीड रिसर्चर डॉ एलेड रॉबर्ट्स ने कहा कि शायद अंतरिक्ष यात्री मूत्र से बने घर में रहना पसंद नहीं करें।
टीम ने गणना की कि डीहायडेट्रेड आलू की 25 किलो की एक बोरी में लगभग आधा टन स्टारक्रेट का उत्पादन करने के लिए पर्याप्त स्टार्च होता है। यह 213 ईंटों से अधिक मटीरियल के बराबर है। तुलना के लिए, एक 3-बेडरूम का घर बनाने में लगभग 7,500 ईंटें लगती हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने पाया कि एक सामान्य नमक, मैग्नीशियम क्लोराइड, जो मंगल की सतह से या अंतरिक्ष यात्रियों के आंसुओं से प्राप्त किया जा सकता है, ने स्टारक्रेट की ताकत में काफी सुधार किया।
इस परियोजना के अगले चरण में स्टारक्रेट को प्रयोगशाला से एप्लीकेशन तक ले जाना है। डॉ रॉबर्ट्स और उनकी टीम ने हाल ही में एक स्टार्ट-अप कंपनी, डीकिनबायो लॉन्च की है, जो स्टारक्रेट को बेहतर बनाने के तरीके तलाश रही है ताकि इसे टेरीस्टीरियल सेटिंग में भी इस्तेमाल किया जा सके।
अगर धरती पर इस्तेमाल किया जाता है, तो स्टारक्रेट पारंपरिक कंक्रीट के बदले हरित विकल्प पेश कर सकता है। वैश्विक कार्बनडाइऑक्साइड उत्सर्जन में सीमेंट और कंक्रीट का योगदान लगभग 8% है, क्योंकि जिस प्रक्रिया से उन्हें बनाया जाता है, उसके लिए बहुत अधिक तापमान और ऊर्जा की आवश्यकता होती है। दूसरी ओर, स्टारक्रेट को सामान्य ओवन या माइक्रोवेव में सामान्य ‘होम बेकिंग’ तापमान पर बनाया जा सकता है, इसलिए उत्पादन के लिए कम ऊर्जा लगती है।