भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुर के शोधकर्ताओं ने एक रोगाणुरोधी पेप्टाइड अणु, SP1V3_1 की संकल्पना को डिजाइन और संश्लेषित किया है, जिसके द्वारा ई. कोली और पी. एरुगिनोसा, निमोनिया और एमआरएसए (मेथिसिलिन-प्रतिरोधी स्टैफिलोकोकस ऑरियस) जैसे ग्राम-पॉजिटिव और ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया को नष्ट किया जा सकता है। यह पेप्टाइड मोलेक्यूल बैक्टीरियल मेम्ब्रेन्स के साथ इंटरऐक्ट करते समय एक हेलिकल संरचना का निर्माण करता है जिससे इन बैक्टीरिया को ख़त्म किया जाता है। विभिन्न अध्ययनों में पेप्टाइड मोलेक्यूल को गैर विषैले अणुओं की श्रेणी में रखा गया है। म्यूरिन मॉडल में इस पेप्टाइड को शीघ्र घाव भरने में और एमआरएसए द्वारा शल्य चिकित्सा के बाद घाव पर संक्रमण को रोकने में भी मददगार पाया गया है।
इस डिजाइन रणनीति में हमारा प्रमुख लक्ष्य सांप के जहर के रोगाणुरोधी गुण को खोए बिना उसके जहर से होने वाले जोखिम को कम करना है। इसलिए हमने सांप के जहर के पेप्टाइड को कम कर दिया और सांप के जहर के जहरीले हिस्से को हटा दिया है। इसके अलावा हमने एन-टर्मिनस पर हेलिकल शॉर्ट पेप्टाइड को जोड़ दिया ताकि जीवाणु कोशिका के अंदर हमारे नए डिज़ाइन किए गए उपचार को आसानी से प्रवेश कराया जा सके।
बैक्टीरियल एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक व्यापक वैश्विक खतरा है जिससे निपटने के लिए वैज्ञानिकों को दुनिया भर में समाधान खोजना होगा। अधिकांश प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रोगाणुरोधी पेप्टाइड्स में अलग-अलग हाइड्रोफोबिसिटी और चार्ज संरचनाएं होती हैं, जो उनकी शक्तिशाली बैक्टीरिया नष्ट करने की क्षमता के बावजूद मानव चिकित्सीय अणुओं के रूप में उनके उपयोग को काफी हद तक सीमित करती हैं। आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ता, डॉ. सुरजीत घोष, प्रोफेसर, बायोसाइंस और बायोइंजीनियरिंग विभाग और स्मार्ट हेल्थकेयर विभाग के साथ डॉ. साम्या सेन, श्री रामकमल समत, डॉ. मौमिता जश, श्री सत्यजीत घोष, श्री राजशेखर रॉय, सुश्री नबनिता मुखर्जी, श्री सुरोजीत घोष और डॉ. जयिता सरकार ने इस शोधपत्र को जर्नल ऑफ मेडिसिनल केमिस्ट्री में प्रकाशित किया है। (DOI:
https://doi.org/10.1021/acs.jmedchem.3c01150?urlappend=%3Fref%3DPDF&jav=VoR&rel=cite-as)
यह शोध दो प्रमुख समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है:
• पहला यह कि इस पेप्टाइड्स की मेम्ब्रेनोलिटिक क्षमता गैर-विशिष्ट प्रकृति बैक्टीरिया को इसके खिलाफ प्रतिरोध उत्पन्न करने का बहुत कम मौका देती है।
• दूसरा यह कि इसमें गतिविधि का एक व्यापक स्पेक्ट्रम है यानी, यह अच्छी जैव अनुकूलता को बनाए रखते हुए ई. कोली, पी. एरुगिनोसा, के. निमोनिया और एमआरएसए जैसे ग्राम-नकारात्मक और ग्राम-पॉजिटिव दोनों को प्रभावी ढंग से मार सकता है।
इस खोज के बारे में बात करते हुए आईआईटी जोधपुर के बायोसाइंस और बायोइंजीनियरिंग विभाग और स्मार्ट हेल्थकेयर विभाग के प्रोफेसर डॉ. सुरजीत घोष ने कहा, “रोगाणुरोधी प्रतिरोध की लगातार बढ़ती समस्या के कारण एंटीबायोटिक दवाओं के विकास में ठहराव के इस युग में रोगाणुरोधी पेप्टाइड्स नवीन जैवनाशक एजेंटों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सभी जरूरी परीक्षण हो जाने के उपरांत इस रोगाणुरोधी पेप्टाइड SP1V3_1 में एक व्यापारिक फार्मास्यूटिकल उत्पाद के रूप में विकसित होने की अपार संभावना है।
उन्होंने आगे कहा, “इस पेप्टाइड को घाव पर कीटाणुनाशक और उपचार के लिए मरहम के तौर (अकेले या अन्य दवाओं / पेप्टाइड्स के साथ मिलाकर) पर, प्रणालीगत प्रशासन के लिए एक इंजेक्शन / मौखिक दवा के रूप में, या एक एरोसोलिज्ड फॉर्मूलेशन के रूप में चिकित्सीय रूप से उपयोग किया जा सकता है।“
इस कार्य को भारत में पेटेंट कराने के लिए प्रारंभिक रूप से ई-फाइल किया गया है [इंडियन पैटेंट एप्लीकेशन (2022), IN 202211052566]। इस शोध के लिए भारत के एसईआरबी, और आईआईटी जोधपुर के एसईईडी द्वारा अनुदान दिया गया है। भविष्य में पेप्टाइड SP1V3_1 को एंटीप्रोटोज़ोअल या एंटीफंगल मोलेक्यूल के रूप में और शोध किया जा सकता है। FLPII (रोगाणुरोधी और इम्यूनोमॉड्यूलेटरी) मोटिफ के कारण, SP1V3_1 को भविष्य में कैंसर रोधी अणु के रूप में भी परीक्षण किया जा सकता है।