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स्वदेशी प्लेटफॉर्म तकनीक की मदद से कोविड-19 बूस्टर वैक्सीन तैयार

बायोटेक्नोलॉजी विभाग (डीबीटी) ने जेनोवा बायोफार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड द्वारा स्वदेशी प्लेटफॉर्म तकनीक का उपयोग करके ओमिक्रॉन-विशिष्ट एमआरएनए-आधारित बूस्टर वैक्सीन विकसित करने की घोषणा की गई है। यह जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी) द्वारा कार्यान्वित मिशन कोविड सुरक्षा के तहत समर्थित है। इसे इमरजेंसी यूज ऑथराइजेशन (ईयूए) के लिए ड्रग कंट्रोल जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) के कार्यालय से मंजूरी मिल गई है।

कोविड-19 के लिए बूस्टर वैक्सीन

बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने जेनोवा के एमआरएनए-आधारित नेक्सट जनरेशन वैक्सीन निर्माण की अवधारणा के प्रमाण से लेकर वुहान स्ट्रेन के खिलाफ विकसित प्रोटोटाइप एमआरएनए-आधारित वैक्सीन के चरण-I नैदानिक परीक्षण तक प्लेटफॉर्म तकनीक के विकास के लिए स्थापित करने में मदद की है। इस परियोजना को ‘मिशन कोविड सुरक्षा’ के तहत अन्य सहायता भी दी गई। जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी) में बायोटेक्नोलॉजी विभाग की समर्पित मिशन कार्यान्वयन इकाई द्वारा ‘द इंडियन कोविड-19 वैक्सीन डेवलपमेंट मिशन’ को आगे के नैदानिक विकास और प्रोटोटाइप वैक्सीन को बढ़ावा देने के लिए 29 जून 2022 को ईयूए प्राप्त हुआ। विकसित प्लेटफ़ॉर्म तकनीक का उपयोग कोविड-19 के लिए एक ओमिक्रॉन-विशिष्ट बूस्टर वैक्सीन विकसित करने के लिए किया गया।

बायोटेक्नोलॉजी विभाग द्वारा विकसित

जेमकोवैक®-ओएम एक ओमिक्रॉन-विशिष्ट एमआरएनए-आधारित बूस्टर वैक्सीन है जिसे बायोटेक्नोलॉजी विभाग के सहयोग से जेनोवा द्वारा स्वदेशी प्लेटफॉर्म तकनीक का उपयोग करके विकसित किया गया है। प्रोटोटाइप वैक्सीन की तरह, जेमकोवैक®-ओएम एक थर्मोस्टेबल वैक्सीन है, जिसे अन्य अनुमोदित एमआरएनए-आधारित वैक्सीन के लिए उपयोग किए जाने वाले अल्ट्रा-कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे पूरे भारत में इसका उपयोग आसान हो जाता है। सुई रहित इंजेक्शन डिवाइस सिस्टम का उपयोग करके इसे इंट्रा-डर्मली डिलीवर किया जाता है। जब एक बूस्टर के रूप में लोगों में अंतःत्वचा द्वारा दिया जाता है, तो यह काफी अधिक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है। नैदानिक परिणाम अपेक्षित प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के लिए वैरिएंट-विशिष्ट टीकों की आवश्यकता को दिखाता है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के केंद्रीय मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने बायोटेक्नोलॉजी विभाग की टीम के प्रयासों की सराहना की और कहा कि, “मुझे बायोटेक्नोलॉजी विभाग द्वारा मिशन को फिर से पूरा करने पर बहुत गर्व है- इस स्वदेशी एमआरएनए-प्लेटफॉर्म तकनीक के निर्माण के माध्यम से प्रौद्योगिकी-संचालित उद्यमशीलता को सक्षम बनाया गया है। हमने हमेशा ‘भविष्य की जरूरतों के अनुरूप’ प्रौद्योगिकी प्लेटफार्म के निर्माण की दिशा में प्रौद्योगिकी-संचालित इनोवेशन का समर्थन किया है, जो कि प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भरता के दृष्टिकोण के अनुरूप है। उन्होने कहा, “एलएमआईसी सहित भारत में वैक्सीन को उपयोग करने के लिए बुनियादी ढांचा, 2 8°C आज मौजूद है और यह नवाचार मौजूदा स्थापित आपूर्ति-श्रृंखला अवसंरचना के लिए तैयार किया गया है। टीके के परिवहन और भंडारण के लिए अति-निम्न तापमान की स्थिति की आवश्यकता नहीं होती है।”

बायोटेक्नोलॉजी विभाग के सचिव और बीआईआरएसी के अध्यक्ष डॉ. राजेश एस गोखले ने कहा कि तकनीकी इनोवेशन के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र को चलाने और बनाने के लिए धन का रणनीतिक निवेश आवश्यक है, और बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने ठीक यही किया जब इसने देश के पहले एमआरएनए-आधारित प्लेटफॉर्म तकनीक के विकास के लिए सहायता प्रदान की। यह एक डिजीज-ऐग्नास्टिक प्लेटफॉर्म है और अपेक्षाकृत कम विकासात्मक समयअवधि में अन्य टीकों को बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने आगे कहा, “क्लीनिकल ट्रायल नेटवर्क्स, कंसोर्टिया ऑफ़ हॉस्पिटल्स के साथ एनबीएम-डीबीटी द्वारा समर्थित थे और उन्हीं साइटों का उपयोग एमआरएनए वैक्सीन के “क्लीनिकल परीक्षण” लिए किया गया था।”

वहीं जेनोवा बायोफार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड के सीईओ डॉ. संजय सिंह ने कहा, “जब हमने इस प्लेटफॉर्म तकनीक का विकास शुरू किया और डीबीटी के पास प्रस्ताव लेकर गए, तो सरकार को एमआरएनए टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म विकसित करने की हमारी क्षमता पर विश्वास था और हमने कर दिखाया। जेमकोवैक®-ओएम को डीसीजी (आई) के कार्यालय से ईयूए प्राप्त करना इस ‘महामारी के लिए तैयार’ तकनीक को शुरू करने, विकसित करने और सक्षम बनाने के हमारे प्रयासों का प्रमाण है। भारत ने अब कोविड-19 के खिलाफ एक नहीं बल्कि दो एमआरएनए टीके विकसित किए हैं। ऐसा इस रैपिड-डिजीज-ऐग्नास्टिक प्लेटफॉर्म तकनीक का उपयोग कर किया गया है। मुझे गर्व है कि मेरी टीम ने देश की पहली एमआरएनए वैक्सीन विकसित करने के लिए पिछले दो वर्षों में अथक परिश्रम किया है। यह एक सामूहिक प्रयास है और सीडीएससीओ की विषय विशेषज्ञ समिति के मार्गदर्शन और बीआईआरएसी की वैक्सीन विशेषज्ञ समिति द्वारा परियोजना की निगरानी के बिना यह संभव नहीं होता।”

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