खेती के क्षेत्र में अग्रणी विश्वविद्यालय पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) ने गेहूं की एक नई किस्म विकसित की है। इस किस्म में एमिलोज स्टार्च की मात्रा ज्यादा है। इससे टाइप-2 डायबिटीज और दिल से संबंधित बीमारियों को कम करने में मदद मिलेगी।
भरा हुआ लगेगा पेट
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक गेहूं की इस वैरायटी का नाम PBW RS1 है। इस गेहूं से बनी रोटी खाने से शरीर में तुरंत ग्लूकोज की मात्रा नहीं बढ़ेगी। एमिलोज और रजिस्टेंट स्टार्च ग्लूकोज को खून में धीरे-धीरे रिलीज करने में मदद करेंगे। PBW RS1 धीरे-धीरे पचता है। भूख भी कम लगती है। यानी अगर आप चार चपाती खाएंगे तो आपको पेट भरा हुआ लगेगा।
इस गेहूं में, अन्य किस्म के जितनी ही स्टार्च की मात्रा है। यानी 66-70 प्रतिशत। लेकिन इसमें 30.3 प्रतिशत रजिस्टेंट स्टार्च होगा। जबकि गेहूं की सामान्य किस्म में इस टाइप का स्टार्च 7.5-10 फीसदी तक ही होता है। विश्वविद्यालय ने चार साल तक गेहूं का परीक्षण किया और फिर ये नतीजे मिले।
PAU में प्रिंसिपल वीट ब्रीडर अचला शर्मा ने अखबार को बताया, “इसके साबुत अनाज के आटे से बनी चपाती और बिस्कुट में भी कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है (एक वैल्यू जिसका उपयोग यह मापने के लिए किया जाता है कि विशिष्ट खाद्य पदार्थ खून में चीनी के स्तर को किस तरह बढ़ाते हैं), जो स्टार्च की कम पाचन क्षमता से जुड़ा हुआ है। इसलिए, यह मोटापा और डायबिटीज (विशेष रूप से टाइप 2) सहित आहार संबंधी बीमारियों के प्रसार को कम करने में मदद कर सकता है।
10 साल में हुआ तैयार
इस किस्म को पादप प्रजनन और आनुवंशिकी विभाग के प्रमुख डॉ. वीएस सोहू के नेतृत्व में गेहूं प्रजनकों की एक टीम द्वारा 10 सालों की अवधि में विकसित किया गया है। पीएयू इस किस्म को विकसित करने के लिए रजिस्टेंट स्टार्च स्तर को प्रभावित करने वाले पांच नए एलील्स (जीन) को संयोजित करने वाला पहला है।
इससे पहले, पीएयू ने दो किस्में जारी की थीं – ज्यादा जिंक कॉन्टेंट के साथ PBW Zn1, और PBW1 चपाती जिसके आटे में प्रीमियम चपाती गुणवत्ता थी जो लंबे समय तक ताजा रहती थी। लेकिन किसी में भी PBW RS1 जैसी विशेषताएं नहीं थीं।
शर्मा ने कहा कि मोटे अनाज को स्वस्थ माना जाता है क्योंकि इससे खून में चीनी के स्तर में बढ़ोतरी नहीं होती है। आहार विशेषज्ञ तो यहां तक सलाह देते हैं कि डायबिटीज और मोटापे से ग्रस्त व्यक्तियों को गेहूं का सेवन पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए। उन्होंने कहा, “लेकिन तथ्य यह है कि गेहूं का उत्पादन और खपत दोनों बहुत अधिक है और हर कोई दैनिक आधार पर बाजरा नहीं खा सकता है। इसलिए, हमारा विचार गेहूं की एक ऐसी किस्म तैयार करने का था जिसका स्वाद और स्वाद सामान्य गेहूं जैसा हो, लेकिन उसका RS अधिक हो और ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम हो।”
लेकिन PBW RS1 में एक महत्वपूर्ण खामी है जो किसानों द्वारा इसकी खेती के रास्ते में रोड़ा बन सकती है। PAU के क्षेत्रीय परीक्षणों में इस किस्म से औसत अनाज उपज 43.18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दर्ज की गई है। यह पंजाब की औसत उपज 48 क्विंटल से कम है, जो कुछ सालों में 52 क्विंटल तक पहुंच गई है और कई किसान 60 क्विंटल या उससे अधिक उपज ले रहे हैं।