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रात में अब दिख रहे हैं कम तारे, प्रकाश प्रदूषण है जिम्मेदार

अब हमें रात में कम तारे दिख रहे हैं। इसकी वजह बढ़ता प्रकाश प्रदूषण (लाइट पोल्यूशन) है। प्रकाश प्रदूषण के चलते रात में आकाश की चमक बढ़ती जा रही है। एक अध्ययन में ये निष्कर्ष निकला है।

अध्ययन में कहा गया है कि तारों देखने की क्षमता में बदलाव बदलाव को प्रति वर्ष आकाश की चमक में 7-10 प्रतिशत की वृद्धि से समझाया जा सकता है। अध्ययन में कहा गया है कि धरती पर कृत्रिम प्रकाश उत्सर्जन के उपग्रह मापन की तुलना में परिवर्तन की दर सबसे तेज है।

यह अध्ययन “ग्लोब एट नाइट” नागरिक विज्ञान परियोजना का हिस्सा है। इसके तहत 2011 से 2022 तक दुनिया भर के नागरिक वैज्ञानिकों द्वारा 50,000 से ज़्यादा नंगी आंखों से देखे गए तारों का विश्लेषण किया गया। इस स्टडी के लिए दुनिया भर में 19,262 लोकेशन का इस्तेमाल किया गया। इसमें 3,699 लोकेशन यूरोप में और बाकी उत्तरी अमेरिका में थे। अगर तारों को देखे जाने में कमी इसी गति से जारी रही तो 250 तारों वाली जगह पर जन्म लेने वाला बच्चा अपने 18वें जन्मदिन पर वहां केवल 100 सितारे ही देख पाएगा।

नतीजे बताते हैं कि नागरिक विज्ञान डेटा पिछले माप विधियों का एक अहम पूरक है। इस स्टडी के नतीजे जर्नल साइंस में प्रकाशित हुए हैं।

पृथ्वी की सतह के एक बड़े हिस्से पर, सूर्यास्त के बाद लंबे समय तक आकाश एक कृत्रिम धुंधलके के साथ चमकता रहता है।

अध्ययन में कहा गया है कि यह “स्काईग्लो” प्रकाश प्रदूषण का एक रूप है। इसका पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ता है। इसलिए इस पर रिसर्च का ध्यान केंद्रित होना चाहिए।

आखिरकार, जीवित प्राणियों के कई व्यवहार और शारीरिक प्रक्रियाएं दैनिक और मौसमी चक्रों द्वारा निर्धारित होती हैं – और इस प्रकार प्रकाश से प्रभावित होती हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि रात में आकाश की मौजूदगी बदल रही है। इससे तारों को देखने और खगोल विज्ञान पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। समय के साथ स्काईग्लो में बदलाव को पहले विश्व स्तर पर नहीं मापा गया है।

अध्ययन में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों ने रात में आकाश को निहारा और फिर इस बारे में रिपोर्ट की। इसके लिए उन्हें आठ तारों का एक चार्ट दिया गया था। अध्ययन में कहा गया है कि प्रत्येक चार्ट प्रकाश प्रदूषण के विभिन्न स्तरों के तहत आकाश को दिखाता है।

इस डेटा से आकाश की चमक में परिवर्तन की दर की गणना करने के लिए 2014 से उपग्रह डेटा के आधार पर आकाश की चमक के लिए एक वैश्विक मॉडल का उपयोग किया गया।

शोधकर्ताओं ने पाया कि दिखाई देने वाले तारों की संख्या में परिवर्तन को रात के आकाश की चमक में वृद्धि से समझाया जा सकता है। यूरोप में, उन्होंने पाया कि प्रति वर्ष चमक में 6.5 प्रतिशत की वृद्धि डेटा से मेल खाती है; उत्तरी अमेरिका में यह 10.4 प्रतिशत है।

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