पिछले दिनों ग्रामीण भारत में की गई एक स्टडी के नतीजे परेशान करने वाले हैं। स्टडी के मुताबिक पांच में से तीन लोग पुरानी स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं। द जॉर्ज इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ का यह अध्ययन ग्रामीण भारत में मल्टीमॉर्बिडिटी (एक व्यक्ति में एक से अधिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं) की व्यापकता और व्यापक स्वास्थ्य देखभाल समाधानों की तत्काल आवश्यकता पर रोशनी डालता है।
एक से ज्यादा बीमारी
द हिंदू बिजनेस लाइन में छपी खबर के मुताबिक रिपोर्ट के लेखक – डॉ. बालाजी गुम्मिडी, वैशाली गौतम, डॉ. ओमन जॉन, अर्पिता घोष, और डॉ. विवेकानंद झा – ने एक से ज्यादा बीमारियों की व्यापकता और कारणों की जांच के लिए आंध्र प्रदेश के एक ग्रामीण क्षेत्र में लोगों द्वारा खुद से बताई गई बीमारियों का विश्लेषण किया। टीम ने गैर-संचारी रोगों, संचारी रोगों और मानसिक बीमारियों का अध्ययन किया।
निष्कर्षों से पता चला कि ग्रामीण आबादी का एक-चौथाई से ज्यादा (लगभग 28 प्रतिशत) डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर दोनों से पीड़ित था। वहीं लगभग 8 प्रतिशत लोग एक साथ डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और गुर्दे की बीमारी से पीड़ित थे। गैर-कार्डियोमेटाबोलिक बीमारियों के मामले में, लगभग 44 प्रतिशत ने एक साथ दो स्थितियों अनुभव किया: एसिड रिफ्लक्स और मस्कुलोस्केलेटल रोग।
एक प्रमुख निष्कर्ष यह था कि डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर हृदय रोग के बजाय पुरानी किडनी बीमारी से निकटता से जुड़े थे। यह एक ऐसे लिंक को उजागर करता है जो आमतौर पर पहले ज्ञात नहीं था। अध्ययन ने अवसाद और चिंता को ग्रामीण भारत में कई बीमारियों के अभिन्न घटकों के रूप में पहचाना।
जॉर्ज इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक डॉ. झा ने बताया कि ग्रामीण भारत में बहुरुग्णता बढ़ती उम्र, स्त्री लिंग और मोटापे से जुड़ी है। लिंग-विशिष्ट अंतर भी सामने आया। पुरुषों में स्ट्रोक और दिल की विफलता का ज्यादा प्रसार देखा गया, जबकि ज्यादा महिलाओं ने आत्मघाती विचारों के बारे में बताया। ये अंतर जैविक और जीवनशैली कारकों के संयोजन से उत्पन्न हो सकते हैं।
युवा भी अस्वस्थ
अध्ययन में युवा कामकाजी आबादी के बीच बहुरुग्णता की व्यापकता पर भी प्रकाश डाला गया, जो अलग तरह की चुनौतियां पेश करता है। बुजुर्गों के विपरीत, युवा लोग कई दवाओं की आवश्यकता को स्वीकार करने के लिए कम इच्छुक होते हैं। डॉ. गुम्मिडी ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में एक और आम समस्या ‘मल्टी-फार्मेसी’ की है। मरीज़ अक्सर विभिन्न बीमारियों के लिए कई डॉक्टरों के पास जाते हैं, जिसके चलते एक ही बीमारी के लिए अलग-अलग दवाएं लिखी जाती हैं और ओवरडोज़ और संबंधित जटिलताओं का खतरा होता है।