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किसी समय मानव प्रजाति विलुप्ति की कगार पर थी

क्या ऐसा सोचा सकते हैं कि एक समय मानव प्रजाति विलुप्ति की कगार पर थी। लगभग 9 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका में रहने वाले मनुष्यों के पूर्वजों को एक खतरनाक दौर का सामना करना पड़ा था। साइंस में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार हमारी प्रजाति (होमो सेपियन्स) के उद्भव से काफी पहले प्राचीन होमो पूर्वजों की जनसंख्या में इतनी गंभीर गिरावट हुई थी कि उनकी विलुप्ति का संकट पैदा हो गया था। उस समय जनसंख्या घटकर मात्र 1280 रह गई थी जो लगभग 1 लाख 17 हज़ार वर्षों तक स्थिर रही।

युनिवर्सिटी ऑफ चाइनीज़ एकेडमी ऑफ साइंसेज़ के जनसंख्या आनुवंशिकीविद और इस अध्ययन के सह-लेखक हैपेंग ली के अनुसार इतिहास में एक लंबा दौर रहा जब 98.7 प्रतिशत मानव पूर्वजों की आबादी का खात्मा हो चुका था। उनका कहना है कि अफ्रीका और युरेशिया में 9.5 लाख से 6.5 लाख वर्ष के बीच जीवाश्मों की बहुत कमी दिखती है। उक्त खोज इस कमी की व्याख्या कर सकती है।

3 लाख साल के इस अंतराल में जनसंख्या तो काफी कम थी ही लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि इतनी छोटी-सी आबादी इतने लंबे समय तक जीवित रही। अनुमान है कि इस समूह में सामाजिक बंधन मज़बूत रहे होंगे और यह पर्याप्त संसाधनों और न्यूनतम तनाव वाले एक छोटे क्षेत्र में रहती होगी।

मानव इतिहास के इस छिपे हुए अध्याय को उजागर करने के लिए शोधकर्ताओं ने नई आनुवंशिक विधियां विकसित कीं। जीनोम अनुक्रमण की आधुनिक तकनीकों ने हालिया मानव आबादियों के आकार के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है लेकिन प्रारंभिक पूर्वजों के बारे पद्धतिगत सीमाएं और प्राचीन डीएनए की कमी बाधा रही हैं। इस नई तकनीक ने शोधकर्ताओं को आधुनिक मनुष्यों के जीन्स के डैटा की मदद से प्राचीन जनसंख्या के उतार-चढ़ाव को समझने का मौका दिया। टीम ने जीन्स के एक विस्तृत वंशवृक्ष का निर्माण करते हुए 8 से 10 लाख साल पहले की अवधि पर ध्यान केंद्रित किया और महत्वपूर्ण वैकासिक घटनाओं का निर्धारण करने में सफल रहे।

यह काल प्रारंभिक-मध्य प्लायस्टोसिन संक्रमण का हिस्सा था जब पृथ्वी गंभीर जलवायु परिवर्तन से गुज़र रही थी और हिमनद चक्र लंबे-लंबे व भीषण हो रहे थे। ऐसा अनुमान है कि इस अवधि में अफ्रीकी क्षेत्र में काफी समय तक सूखा रहा होगा जिसने संभवतः हमारे पूर्वजों के पतन और नई मानव प्रजातियों के उद्भव में प्रमुख भूमिका निभाई होगी। ये नई प्रजातियां अंततः आधुनिक मानव, निएंडरथल और डेनिसोवन्स में विकसित हुई।

लगभग 8,13,000 साल पहले मानव-पूर्वज जनसंख्या में फिर से वृद्धि शुरू हुई। हालांकि इस पुनरुत्थान के कारण तो स्पष्ट नहीं हैं लेकिन इस लंबे अंतराल ने मनुष्यों की आनुवंशिक विविधता पर गहरा प्रभाव डाला होगा जिसका असर कई लक्षणों (जैसे मस्तिष्क का आकार) पर पड़ा होगा। ऐसा अनुमान है कि इस अवधि में दो-तिहाई आनुवंशिक विविधता नष्ट हो गई थी।

इस शोध अध्ययन से लगता है कि यह मानव विकास में एक महत्वपूर्ण चरण रहा होगा और यह कई सवाल उठाता है। लेकिन कई पुरातत्वविद इन निष्कर्षों की पुष्टि के लिए अतिरिक्त पुरातात्विक और जीवाश्म साक्ष्य की अपेक्षा करते हैं। जैसे, इस अध्ययन में वैश्विक जनसंख्या में भारी कमी की जानकारी दी गई है लेकिन अफ्रीका के बाहर स्थित पुरातात्विक स्थलों की प्रचुर संख्या इस निष्कर्ष की पुष्टि नहीं करती। अन्य विशेषज्ञों के अनुसार यह कोई विश्वव्यापी परिघटना न होकर मात्र एक छोटे से क्षेत्र में सीमित थी। (स्रोत फीचर्स)

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