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Eps-4 Science Weekly – May 2019 |

News In Science के Science Weekly round up में आपका स्वागत है, हमेशा की तरह हम आपके लिए लाए हैं साइंस से जुड़ी रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियां बदल गई किलोग्राम की परिभाषा अब किलोग्राम की परिभाषा बदल गई है| जी हां दरअसल Paris में पिछले साल 16 नबंवर को हुई, अंतरराष्ट्रीय बांट एवं माप ब्यूरो … Continue reading Eps-4 Science Weekly – May 2019 |

News In Science के Science Weekly round up में आपका स्वागत है, हमेशा की तरह हम आपके लिए लाए हैं साइंस से जुड़ी रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियां

बदल गई किलोग्राम की परिभाषा
अब किलोग्राम की परिभाषा बदल गई है| जी हां दरअसल Paris में पिछले साल 16 नबंवर को हुई, अंतरराष्ट्रीय बांट एवं माप ब्यूरो BIPM की General Conference में 60 देशों के प्रतिनिधियों ने सात आधार इकाइयों में से चार को फिर से परिभाषित करने का प्रस्ताव रखा था जिसे स्वीकार्य कर नई परिभाषा के साथ 20 मई को World Metrology Day से लागू कर दिया गया है| माप और वज़न की ये चार आधार इकाइयां हैं किलोग्राम, केल्विन, मोल और एंपीयर।
अब से सभी SI Unit fundamental constant की प्रकृति पर आधारित होंगी, जिसके मायने हमेशा के लिए तय हो जाएंगे और ये और भी अधिक सटीक माप कर पाएंगी| हालांकी ये जो बदलाव हुए हैं उनका लोगों के दैनिक जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। लेकिन शोध और विज्ञान में इसका बहुत बड़ा महत्व है क्योंकि यहाँ सटीक माप की ज़रूरत पड़ती है।

दुश्मन पर भी रखेगा नज़र रीसैट-2बी
अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत को एक और बड़ी सफलता मिली है| 22 मई को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने रीसैट सीरीज़ के उपग्रह 2 बी का सफ़ल प्रक्षेपण किया, इस रडार इमेजिंग सैटेलाइट के लॉच से कृषि, वानिकी और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में काफ़ी मदद मिलेगी, साथ ही ये उपग्रह रक्षा एजेंसियों के लिए भी काफ़ी सहयोगी साबित होगा
RISAT 2b जासूसी उपग्रह के तौर पर भी काम करेगा इसके द्वारा दुश्मन देश में चल रहे आतंकी कैंपो या देशविरोधी गतिविधियों पर सटीक नज़र रखी जा सकेगी, सिंथेटिक अपर्चर रडार से युक्त ये सैटेलाइट रात दिन या ख़राब मौसम में भी तस्वीरें लेने में सक्षम है, इसके द्वारा ज़मीन से तीन फीट उपर तक की साफ़ तस्वीरें ली जा सकती है।

क्या है चंद्रमा और पृथ्वी पर पानी के बीच नाता?
चंद्रमा के निर्माण के साथ ही पृथ्वी पर बने थे जीवन के आसार क्योंकि इसी प्रक्रिया में पृथ्वी पर जल आया था, जी हां बर्लिन की साइंस पत्रिका नेचर एस्ट्रोनॉमी में हाल ही में छपे शोध के मुताबिक़ तकरीबन 4.4 खरब साल पहले एक ब्रह्मांडीय पिंड के पृथ्वी से टकराने से चंद्रमा का निर्माण हुआ था और इसी टक्कर के दौरान पृथ्वी पर पानी भी आया।
वैज्ञानिकों के ताज़ा शोध के मुताबिक़ पृथ्वी से टकराने वाला ये उल्कापिंड मंगल ग्रह जितना बड़ा था इस पिंड को थिया भी कहते हैं, और ये सौर मंडल से बाहर से आया था और इसी ने पृथ्वी को भारी मात्रा में पानी से भर दिया, इस शोध ने कई नए दृष्टिकोण दिए हैं जिसने चंद्रमा के निर्माण और पृथ्वी पर पानी को एक दूसरे से जोड़ दिया है इससे ये स्पष्ट हो जाता है कि चांद के बिना हमारी पृथ्वी पर पानी को होना संभव नहीं हो पाता।

क्यों ख़त्म हो जाएगा सतलज का पानी?
नए अध्ययन से पता चला है की जलवायु में लगातार हो रहे परिवर्तन के कारण 2050 तक सतलज नदी घाटी के 55 प्रतिशत और 2090 तक लगभग 97 प्रतिशत ग्लेशियर्स लुप्त हो सकते हैं। आपको बता दे सतलज नदी घाटी हिमालय क्षेत्र की दर्जनों घाटियों में से एक है जिसमें हजारों ग्लेशियर हैं और सतलज के वार्षिक जल प्रवाह का लगभग आधा हिस्सा गलशियर्स के पिंघलने से आता है, हिमाचल प्रदेश के भाखड़ा बांध में आ रहे जल का 80 प्रतिशत हिस्सा इसी नदी पर निर्भर है। लेकिन इनमे से कुछ ग्लेशियर अब धीरे-धीरे सिकुड़ रहे हैं जो एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है।
इस खतरनाक स्थिति की वजह से भाखड़ा बांध सहित सिंचाई और बिजली की कई परियोजनाओं के लिए पानी की उपलब्धता पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
ये थी इस हफ्ते की कुछ रोचक ख़बरें उम्मीद है आपको हमारी ये जानकारियां ज़रूर पसंद आई होंगी, तो इस कार्यक्रम को लाइक और शेयर ज़रूर करें और हमारे चैनल न्यूज़ इन साइंस को सब्स्क्राइब करना न भूलें| आज के लिए इतना ही नमस्कार

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